छाँव भी लगती नहीं अब छाँव [कविता] - लाला जगदलपुरी

हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / चेतना को गति मिली स्वच्छन्द, / हादसे, देने लगे आनंद / खिल रहे सौन्दर्य बोधी फूल / किंतु वे ढोते नहीं मकरंद। / एकजुटता के प्रदर्शन में / प्रतिष्ठित हर ओर शकुनी-दाँव। / हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / आधुनिकता के भुजंग तमाम / बमीठों में कर रहे आराम / शोहदों से लग रहे व्यवहार / रुष्ट प्रकृति दे रही अंजाम। / दुखद कुछ ऐसा रहा बदलाव / छाँव भी लगती नहीं अब छाँव। आगे पढ़ें... →

कवि डा. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ जी के सान्निध्य में - डा॰ महेन्द्रभटनागर

ग्वालियर-उज्जैन-इंदौर नगरों में या इनके आसपास के स्थानों (देवास, धार, महू, मंदसौर) में वर्षों निवास किया; एतदर्थ ‘सुमन’ जी से निकटता बनी रही। ख़ूब मिलना-जुलना होता था; घरेलू परिवेश में अधिक। जा़हिर है, परस्पर पत्राचार की ज़रूरत नहीं पड़ी। पत्राचार हुआ; लेकिन कम। ‘सुमन’ जी के बड़े भाई श्री हरदत्त सिंह (ग्वालियर) और मेरे पिता जी मित्र थे। हरदत्त सिंह जी बड़े आदमी थे; हमारे घर शायद ही कभी आये हों। पर, मेरे पिता जी उनसे मिलने प्रायः जाते थे। वहाँ ‘सुमन’ जी पढ़ते-लिखते पिता जी को अक़्सर मिल जाया करते थे। ‘सुमन’ जी बड़े आदर-भाव से पिता जी के चरण-स्पर्श करते थे। लेकिन, ‘सुमन’ जी में सामन्ती विचार-धारा कभी नहीं रही। आगे पढ़ें... →

भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख] - डॉ. काजल बाजपेयी

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मैं बचपन से दो प्रकार की संस्कृतियों के बारे में सुनती आ रही हूँ। भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति या अंग्रेजी संस्कृति।  आगे पढ़ें... →

हिंज़ड़ो कुण..? अै कै वै..? [ मारवाड़ी कहानी ]- - दिनेश चन्द्र पुरोहित


 दिनेश चन्द्र पुरोहित रचनाकार परिचय:-
लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com अँधेरी-गळी, आसोप री पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला, जोधपुर.[राजस्थान]
मारवाड़ी कहानी “हिंज़ड़ो कुण..? अै कै वै..?” लेखक - दिनेश चन्द्र पुरोहित  


अहमदाबाद-मेहसाना लोकल गाड़ी सरणाटां सूं पटरियां माथै रपटण लागी! उण गाड़ी रा एक सयानान डब्बा रै केबीन मांय बिराज़्या रशीद भाई, आपरा साथी सावंतजी अर ठोकसिंगजी रै साथै बंतल करता जा रिया है! हाथ मांय अख़बार ल्यां व्हिनै पढ़ता-पढ़ता कैवता जा रिया है क “देखौ सावंतजी अर थे ठोकसिंगजी, कांन खोल नै सुण लौ क अबै ख़ुदा जाणै अबै कैङौ ज़मानौ आयग्यौ है..? इण ख़लकत रा लोगां रा कांई चरितर देखां, यार..? अबै तो इज़्ज़तदार लोगां नै, नीची नाड़ घाळ नै गळी-मोहल्ला सूं गुज़रणौ पड़ै!”   


“हां यार, रशीद भाई! काळा मुंडा करण्यां मिनख़ां री जद सूं बातां सुण रियौ हूं, उण दिण ऊं इण लोगां रै प्रति म्हारौ मूण्डौ घिन्न सूं भर जावै! अठी म्हारी आंख्यां व्है जावै सुळगता खीरा रै तरै..लाल-सुरख़! पण इण राज़ में आपां कर की नहीं सकां, यार! बस खाली अबै तौ धमीङा मन-मांय लेवता रेवां, म्हारा भाई! बस आपांणी तो आ दसा व्हेग्यी, जाणौ आपां बिण पांणी री माछळी व्हौं..? औरुं भळै आपां कर कांई सकां, यार..?” सावंतजी बोल्या!                                            
की भी बात व्हौ, यार..? पण थे खुल नै बोल्या करौ, यार! यूं कांई अख़ाणां बोल नै कांम चलावौ यार..छेवट बात है, कांई..?” ठोकसिंगजी बोल्या!   
 
“बात आ है, यार! क, पाली सिन्धी कोलोनी मांय सिंधियां री ७ बरसां री छोरी रै साथै कोई कमसळ कीधौ है दुस्करम! इण सूं पाली रा सगळा सिन्धी माणू मिळ परा नै, पाली सेहर री सारी दुकांना बंद करा न्हाखी! आ है सा, न्यात री अेकता!” रशीद भाई बोल्या! 
      
“थे तो करौ हो, पुराणी बातां! नयी बात तो आ है, क ‘पाली री महावीर नगर कोलोनी रै मांय, कठै ई ब्याव-सादी में आयोड़ी इग्यारह बरसां री छोरी नै कोई कमसळ फुसलाय नै लेयग्यो सूनयाङ मांय..बठै लिजाय नै छोरी रै साथै खोटो कांम कीधौ!” सावंतजी बोल्या!   
  
“औ तो वौ इज महावीर नगर है सा, जठै पाली जैन समाज रा धनाढ्य लोग रैया करै! म्हने तो अबै लागै, औ काळौ मूण्डौ करण्यौ मिनख़ किन्नी हालत में बचण वाळौ नहीं! औ पूरौ समाज व्हिनै सज़ा दिलावण सारुं, पूरा पैसा रौ ज़ोर अर सियासती ताकत लगा देवेला! व्हिनै सज़ा दिलायां पछै इज़, अै लोग सायंती धारण करेला! अठी देखोसा, इयांरै समाज रौ इज़ संसद सदस्य गुमानमल लोढा  है, अर आ विधान-सभा री मेम्बर पुष्पा जैन भी इयांरै न्यात री इज़ है! इयांरै न्यात री अेकता तौ जग-चावी है सा! पाली रै मांय किन्नी न्यात री अेकता दैखौ, तौ दैखौ जैनियां री! कै दैखौ अेकता, मुसलमानां रै न्यात री!” इत्तौ कैय नै ठोकसिंगजी व्या चुप! औरुं इण आगै वै, अेक सबद नहीं बोल सकिया!                       
“कीकर, बोलो-बोलो बैठ गिया सा..? फेरूं, आगै बोलौ सा! थाणौ भासण तो मात देवै...” रशीद भाई हँसता-हंसता बोल्या “कांई ठोकसिंग्सा..? आगै नहीं मालुम, किन्नै आघै ऊं बड़तां नै देखल्यौ..थे..? भईसा थाणी तो बोलती बंद व्हेग्यी...?”

“कांई बोलूं, रशीद भाई..? थान्नै आकती-पाकती दीसै कोयनी कांई..? थाणा ख़ास सगोजीसा मिज़मान...वै इज़ ताळी बजावणियां प..पधार..” साम्ही आवता किन्नर रशीदा जान नै देखतां ई, ठोकसिंगजी री बोलती बंद व्है जावै! अबै नीची धुण घाल्यां बोलो-बोलो बैठ जावै...बिचारा ठोकसिंगजी! क्यूं क ताळी बज़ावतौ रशीदा जान मांय बड़ग्यो हौ! अर वौ तौ सीधौ जा परो नै, ठोकसिंगजी रै गालां माथै हाथ फेरण ढूकौ!  
                                
अस्यो लागतौ हौ क “ठोकसिंगजी कांई बोल्या हा..वा बात औ रशीदा जान सुण लीवी व्है..? इण कारण हमै औ व्यारै गालां रै माथै हाथ फेरतौ-फेरतौ यूं कैवतौ गियौ क “कांई बोलौ हौ, ठोकसिंगसा, मिज़मान तौ म्हूं म्हारा समधीसा रशीद भाई रौ बण जाऊंला, पण ख़रचौ करेला म्हारा सेठ ठोकसिंगजी! कांई मूंडौ पलकावौ हो ख़रचा रौ नांम सुण नै..?” इत्तौ कैय नै वौ रशीद भाई रै पहाङै बैठ जावै! व्यारै हाथां में झेल्योङौ अख़बार आघौ लेय नै, केवण लागौ क "समधीसा, यूं कांई मूंडौ छिपावौ हौ..? लचकाणौ पड़ै जैङी ख़बरां पढ़ नै मूंडौ छिपावौ कांई...?                                             
औ सुण नै रशीद भाई, भोळौ मुंडौ बणाय नै यूं कैवण लागा क “आ बात कोनी! आगै औरतां री इज़्ज़त बचावण सारुं लोग आपरा माथा कटा लेवता हा, पण हमै...” आगै की नी बोल नै नीची नाड़ घाल नै भईसा बोलो-बोलो बैठ जावै!  
     
“समधीसा, किन्नी बातां करौ हौ..? आज़कल रैया कठै मरद..? मैं तौ कैवूं हूं क “अैङा मिनख़ां नै मरद कांई कैवां...? म्हने तौ इयांनै हिंज़ङौ कैवतां में लचका पड़े!” रशीदा जान बोल्यौ!    
          
औ कांई कैय दीधौ, रशीदा बाई...? अैङा खोटा कांम करण वाळां मिनख़ां नै सज़ा देवणी तौ आघी बळी, अरे काई कैवूंसा थाणै...? अै तौ अैङा कमीणा रै साम्ही मुंडा-मूंड ऊब नै सीधी बात नी कर सकै..! अैङा मिनख़ां नै पछै, कांई कैवां..? हिंज़ङौ कैयदां, तौ इण में थाणै कैन्नी अड़चन...?” रशीद भाई मुळकाण छोड़ता बोल्या! 
                                  
रशीद भाई री बातां सुणतांई रशीदा जान रै चेहरा री रंगत बदळती नज़र आयी! पछै कांई..? वौ तौ रिङकता सांडिया री तरै, लाल-सुरख़ आंख्यां कीधौङौ ज़ोरां ऊं ताळी बजाई! इण ताळी री आवाज़ सुण नै पाखती वाळां केबीन में ऊबौ दूजौ हिंज़ङौ, ज़वाब में पाछी ज़ोरां ऊं ताळी बजायी! अर पछै उण केबीन सूं अेक हिंज़ङौ इण केबीन में आवतौ दीस्यौ! 
                     
“उस्ताद, आप अठै बिराज़्या हौ, कांई..?” कन्नै आय नै वौ हिंज़ङौ ताळी बजाय नै बोल्यौ! पण ज्यूं ई वौ रशीद भाई सूं नज़रां मिळायी, अर लचका खाय नै नीची धुण घाळ नै ऊबग्यौ! व्हिनै ई तरै ऊबौ दैख नै, रशीद भाई की सोचण सारुं मज़बूर परा व्या! अर साथै-साथै व्यारै हिवड़ा मांय उथळ-पुथळ मचण लागी क “इण मिनख़ नै वै कठै ई देख्यौ व्है सकै..? औ मिनख़ म्हने इज़ दैख नै, नीची धुण क्यूं घाळी..? कै तौ औ गेलसफ़ौ, म्हने ओळख़तौ व्हेला..?” 

हमै रशीद भाई नज़रां गढ़ाय नै व्हिनै सावळ देखण लागग्या क “औ मिनख़ छेवट कुण व्है  सकै...?” व्यानै इन्नौ चेहरौ, की जाण्यौङौ-पिछाण्योङौ लागौ! दिमाग़ माथै ज़ोर देय नै सोचण लागग्या, पण तजवीज़ नहीं कर साकिया क औ कुण वही सकै..? व्यानै ई तरै यूं भाळता दैख नै, रशीदा जान कैवण लागौ क “रशीद भाई, कांई थांने म्होंरी सरदारी बाई पसंद आयगी कांई..?” इत्तौ कैय नै रशीदा जान तौ ठठो लगाय नै हंसण ढूकौ! वीनी हंसी सुण नै, बिचारा सरदारी बाई नै लचका पड़न ढूका! अबै बिचारो सरदारी बाई लचका पङतौ यूं सोचण लागौ क “अठै धरती-कंप व्है जावै, अर औ विण में समा जावै!” ई तरै व्हिनै नीची नाड़ घाल्यां दैखतांई, रशीदा जान कैवण ढूकौ क “अबै ई तरै थे हेटे कांई भाळौ हौ..? नीचे काटण वाळी बारुड़ी कीङियां कोनी चालै, जिकौ थानै च्यूंटी परी भरी..? अबै जावौ दूजा केबीन मांय, अठै कोई पैसा री बरसात कोनी हूवण वाळी..? अठै तौ आपांणा समधीसा बिराज़्या है, इयांरै कन्नै ऊं आपांणै ख़रचौ कारावणौ कोयनी है! थे आगै चालौ, मैं आऊं इज हूं!”
बिचारौ सरदारी बाई फटकै सूं खिस्कियौ, अर जाय पूगौ दूजा कबीन मांय! व्हिनै जावतां ई रशीदा जान ठठो लगाय नै हंसण ढूकौ! वो तौ अैङौ हंसियौ, दांतीया काड नै क बापडा रौ पेट दुकण लागग्यौ! छेवट पेट दबाय नै बोल्यौ क “भईसा, की ओळख़िया इण सरदारी बाई नै..? की याद आयो क थे कठेई इन्नै दैखिया व्हौ..?” पण रशीद भाई तौ दो किलो री घांटकी हिला परी नै जतला दीधौ क वे इन्नै ओळख़ियौ कोयनी! ज़रै बिचारौ रशीदा जान बोल पङियौ क “अरे जनाब, की मगज़ माथै ज़ोर दिया करौ! अै थाणा मज़ीद भाई रा अज़ीज़ रफ़ीक गुलाब खां साहब रा चेला “सुलतान खां है, जिका थाणा इलाक़ा रा नामी गुंडा हा! अबै तौ थान्नै याद आयग्यौ व्हेला क अै थाणा मोहल्ला री कई बहू-बेटियां री इज़्ज़त रै साथै खिलवाड़ करणिया और कोई नहीं, अै इज़ श्रीमानजी ४२० है!” रशीद भाई मुंडा में आंगळी घाळ नै इचरच सूं बोल्या क “हैंऽऽ, साँची बात है..?” रशीदा जान मुळक नै बोल्यौ “हां भईसा, हंडरेड परसेंट सांच है! अेक दिन, आ हुस्यारा री पूंछङी यतीमखाना री कन्नै वाळी गळी में बेहोस व्योड़ा मिळ्या हां, पुळस नै! पुळस दैखियौ क अै तीस मारखां बधिया व्योड़ा गळी में पड़िया है! हमै बोलौसा, कैङी व्ही इण दुसटी रै साथै...?”                                                                               
“म्हारै तौ की पल्ले नी पड़े..? म्हारौ तौ मगज़ की कांम करै, कोयनी! औ कीकर व्हेग्यौ, रशीदा बाई...?” रशीद भाई इचरच सूं बोल्या !

“इण पापी सुलतान खां नै, दुस्करम री सज़ा देवण वाळौ कुण..? कोई मरद कोयनी दीवी है इन्नै, सज़ा.. इन्नै सज़ा देवण्यौ है अेक हिंज़ङौ, व्हौ है म्हूं..रशीदा जान! थे साला सैंग हिंज़ङा सूं गया बीता व्हेग्या हौ, मरद्पणौ थाणै लोगां में रैयौ कोयनी! थे लोग कांई हिंज़ङा ऊं बराबरी करोला..? बिराज गिया साला थे घरै चूड़ियां पैर नै! जदै औ हरामी, सरे-आम गुलाम खां साब री नेक-दुख़्तर नसीबा रै साथै कीधौ हौ दुस्करम !” इत्तौ कैय नै रशीदा जान लम्बी-लम्बी सांसा लेवण लागग्यौ! औरुं पछै बैग सूं काडी चांदी री डब्बी! उण मूं अेक पांन री गिलोरी बारै काड नै मुंडा मांय ठूंसी, अर पछै अेक-अेक लबज़ माथै ज़ोर देवतौ यूं कैवण लागौ क “लौ थानै औ पूरौ किस्सौ मांड नै इज कैय दूं! व्यौ कांई आख़िर..? पछै, थां लोगां नै तसल्ली परी व्हेई! पछै थे खुद कैवोला क “आज़ रा मरद हिंज़ङा ऊं गया-बीता है....अंखियां रै साम्ही नारी री इज़्ज़त लूटती दैख सकै, पण मुंडा ऊं अेक लबज़ बारै नहीं निकाळ सकै!” इत्तौ कैय नै रशीदा जान किस्सौ बयान करण ढूकौ! हमै सगळा जणां री आंख्यां रै साम्ही वाकया चितराम बण नै छावण लागा! 

माणक-चौक रै नज़ीक, पुराणा रईस लोगां रौ मोहल्लो है! जिण रौ नांम है, लायकांन-मोहल्ला! अठै पुराणी हवेलियां आज़ ख़स्ता हालत में नज़र आवै! देस री आज़ादी व्या पछै अै पुराणा रईस दिनों-दिन ग़रीब व्हेता गिया! क्यूं क हमै, राजा-महाराजा सूं मिळण वाली मदद बंद व्हेग्यी! पण अै लोग आपरी रईसी ज़िंदगी माथै लगाम लगाई कोयनी, जिन्नू इन्नारा नांच-गाणा रा चाव व्यानै औरुं ग़रीब कर न्हाख्यौ! अबै इण बख़त पैसा री आमद तौ रैयी कोयनी, बस अबै अै आंख्यां रै साम्ही ऊबी हवेलियां, इतिहास रै पुराणा पान्ना में सिमटग्यी! पैली रै तरै नौकर-चाकर तौ अबै रैया कोयनी, हमै तौ खंडहर व्हेती हवेलियां री मरम्मत कारावणी हीमत इणां में रैयी कोयनी! क्यूं क अबै पैसा रौ ज़ोर तौ रैयौ कोयनी, ज़रै आ मरम्मत करावणी अेक सुनहरौ सपनों बणग्यौ है! हमै, बिचारा करै कांई..? पेट तौ मांगै रोटी-बाटी! पण अै ठेरिया, अंगूठा छाप! लिखणी-पढणी तौ सीख्यौ कोनी, खाली तबला-पेटी बजावणी आवै..पण, इण मसीनी-युग में इन्नी कठै क़दर..? ज़रै बिचारा राजम्हेलां रा पुराणा रब्त कांम में लेय नै, कठै ई सरकारी-गैर सरकारी दफ़्तर में चपरासी कै चौकीदार री नौकरी हासिल कर ली! इण सूं ऊची नौकरी री आस तौ व्यानै रैयी कोनी! 

इण मोहल्ला रै मांय, गुलाम खां साब रैया करै! ज्यांरा वालिद अब्दुल अली साब रौ निकाह, उस्ताद मुख़्तार अब्बास साब री नेक-दुख़्तर नूरजहां रै साथै व्यौ हौ! मुख़्तार साब किशनगढ़ राज़-घराने रा मानिज़्योङा तबलची रैया हा! मुख़्तार साहब रा ख़ास चेला हा, लचका महाराज! अै लचका महाराज अर नूरजहां दोणू जणां साथै-साथै मुख़्तार साब कन्नू तालीम लीवी ही! लचका महाराज नूरजहां नै आपरी धरम री बैन बणा राखी ही! वा हर राखी रा त्यूंहार माथै, नूरजहां लचका महाराज री कलाई माथै राखी बंधिया करती ही! 

जवाहर खाना री हवेली मांय, लचका महाराज रौ घणौ आवणौ-जावणौ हौ! उठै अै लचका महाराज किन्नरां नै नांच-गाणे री तालीम दिया करता हा! उठै इज़ औ रशीदा जान, लचका महाराज कन्नू नांच-गाणे री तालीम लिया करतौ हौ! औ कई वळा उस्ताद रै साथै गुलाम खां साब री हवेली, आया-जाया करतौ हौ! उस्ताद रा रब्त रै कारण, औ रशीदा जान भी हवेली सूं आपरौ रिश्तौ जोङ दियौ हौ! हमै लचका महाराज तौ श्रीजी सरण व्हेग्या, पण औ रशीदा जान इण हवेली सूं बराबर रिस्तौ बणा राख़्यौ! इण वास्तै धंधा सारुं जद कदेई किन्नर मंडली रै साथै लायकांन मोहल्ला में बावड़े, तौ कदेई गुलाम खां साब री हवेली कन्नी नेग लेवण सारुं पग नहीं धरै! उण रै हिवड़ा मांय लचका महाराज अर नूरजहां रै भाई-बैन रौ रिस्तौ घणौ मान राखै! 

हमै अै दोणू भाई-बैन तौ रैया कोयनी, पण औ रशीदा जान इण रिस्ता नै बराबर निभावतौ आ रियौ है! लायकांन मोहल्ला मांय आ बात जग-चावी है क रशीदा जान गुलाम खां साब री हवेली सूं घणौ हेत राखै! केई पांण मोहल्ला रा निवासी व्हिनै ओळबौ परो दे दिया करै, क “कांई इत्तौ नेग मांगौ हौ..? थाणी गुरु-बैन रै हवेली री, बात तौ राखौ!” इत्तौ सुणतांई व्हौ झट मुळक नै नेग कम कर दिया करै! 

अेक दिन मंडली रै साथै औ मोहल्ला मांय आयौ, अर हसन अली रंगरेज रै घर रै बारै रंग जमावण लागौ! अर नाचतौ-गावतौ आवतां-जावतां मारगिया अर मोहल्ला रा लोगां नै भेळा करतौ रैयौ! अबै छोरो मोत्यो तौ ढोलकी बजावातौ गियौ, अर व्हीनी थाप माथै पूरी किन्नर मंडली नाचण ढूकी! अर साथै-साथै गीत भळै गावण ढूकी क “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है..?” अबै रशीदा जान नाचातौ-नाचतौ हसन अली रंगरेज री बेगम नुसरत बेग़म कन्नै जाय पूगौ! नुसरत बेग़म झट आपरे पोता माथै पांच सौ रिपिया री घोळ कर नै रशीदा जान परी झिलायी! रिपिया देवती पांण, आ नुसरत बेग़म इण रशीदा जान नै ओळबौ परो दीधौ क “थाणै तौ ठाह ई कोयनी पड़े क थाणा गुरूजी री बैन रा पोतरा रौ ब्याव व्हेग्यौ है, अर म्हां मोहल्ला वाळा थाणै उठै कठै ई दैख्या कोयनी! कांई थाणै गुलाम भाईजान बुलायौ कोयनी कांई...? अबै थाणै कांई कैवां..? छोरो तौ पनीज़ गियौ, नै अबै तौ व्हीनी लुगाई भी घरै आयग्यी है! कठै ई आप, गुलाम खां साहब ऊं नाराज़ हौ कांई...?”

इत्ती बात सुणतांई, व्हिनै हिवड़ा रै मांय अेकण कन्नी खुसी तौ व्ही क छोरा रौ घर मंद गियौ..पण, दूजी तरफ़ औ दुःख भी हौ क “गुलाम खां साब व्हिनै याद क्यूं नी करियौ..? अर अठै तौ हद कर दी, ब्याव री कूंकूं पतरी नहीं भेज नै अै तौ सारा रब्त ख़तम कर दिया..?” हमै तौ खाली ओळबौ इज देवणौ बाकी रैयग्यौ, आ मनङा री बात हिया में जाय नै सूल रै तरै चुभण लागी! पछै कांई..? व्हौ तौ झट आपरी मंडली लेय नै जाय पूगौ, गुलाम खां साब री हवेली! हवेली रा चौक में जाय नै, ज़ोर-ज़ोर ऊं ताळियां बजावतां थकौ  कैवण ढूकौ क “हाय हाय छोरे को परणा दिया, यह कोई मज़हाक नहीं! हाय हाय हमको तो सगुन चाहिए, हाय हाय.. नेग ल्यावो, दो हज़ार रिपिया का नेग चाल रिया है..? अरे ओ भाभीजान, साड़ी-ब्लाउज़ ल्याओ! साथ में मिठाई-विठाई लाणा भूलना मती! धान तौ थाणै को देणा ही पड़ेगा! ओय ओय, यह कोई मज्हाक नहीं है!” इण तरै रा बोल सुणतांई, गुलाम खां साब घबरायग्या...अबार-अबार छोरा नै पनायौ है, हजारों रिपिया ख़रच व्हेग्या,..ऊपर सूं करज़ा ऊं नैरा दबग्या..? अबै कठै ऊं ल्यावां बे हज़ार रिपिया इण रशीदा जान नै देवंनै..?

अबै वै, रशीदा जान नै ख़ुद री दयनीय हालत बतावणी चावै..पण औ रशीदा जान तौ व्यानै बोलन्नौ मौक़ौ ई नहीं देवै..बस, व्हौ तौ बे हज़ार रिपिया नेग रा लेवण में इज़ तुल्योड़ो..? अबै, कीकर व्यारी गेल छूटै...? अठै तौ मीठी ईद व्हौ या बकर-ईद, औ तौ सैंग त्योंहार माथै इण बस्ती में सगुन लेवतौ रैवै! व्ही टैम औ मोत्यो ज़रूर व्हिनै साथै रैया करै, औ मोत्यो कदेई इन्नौ साथ छोड़ नै कठेई नी जावै!

केई बरसां पैली इण मोहल्ला में अेक अध-काली लुगाई रैवती ही, वा मोहल्ला री साळ में आपरौ बसेरौ कर राख्यौ हौ! आवता-जावता मोहल्ला रा लोग, इण काली लुगाई नै खावण-पीवण अर ज़रुतमंद री सारी चीज़ा देय जावता! इन्नै रैया रै की महिना पछै, लोगां नै मालुम पड़ी क कोई निलज़ मिनख़ आपरी हवस मिटाय नै इण बापड़ी नै दोजीवायती बणा दीवी! आ ख़बर बारै आवतां ई, मोहल्ला में चरचा रौ मुद्दौ बणग्यौ! क “औ कैङौ कमसळ मिनख़ है, जिकौ इण बापड़ी अध-काली लुगाई री ज़िंदगी नै मुस्की बणा दीवी..?” साळ कन्नै ऊं निकळती मोहल्ला री लुगाइयां कैवती जावती क “हाय अल्लाह, वो कैङौ सूगळौ मिनख़ व्हेला ..? जिकौ इण सूगळी, वास आवती अर ज़ोरां री दुरगंध मारती इण लुगाई रै साथै, हम-बिस्तर हुय नै खोटा करम कीधा! खुदा की कसम, व्हौ आदमी ख़ुद कित्तौ सूगलौ व्हेला..?” छेवट किणी तरै नौ महीना बीत्या, इण काली लुगाई री कोख़ सूं अेक  फुठरौ छोरो जळमै! छोरा रै जळमतां ई, वा काली इण नवज़ात छोरा नै बिळखतौ छोड़ नै अल्लाह रै घरै गयी परी..! छोरो फुठरौ है, कै कोज़ौ..? इन्नू, लोगां नै कांई करणौ..? उण यतीम नै अपनावण रौ हूवणौ चाहिजै, काळज़ौ! जिकौ हमै लोगां में रैयौ कोयनी! अठै अपनावणौ रौ मुतलब है, किन्नी नाजायज़ औलाद नै अपनावातां थकां उण रौ पालण-पोसण करणौ! औरुं पछै उण बच्चा नै आपरौ ख़ुद नांम देवणौ...औ कांम कोई हंसी-खेल कोयनी है..? अैङा टाबर नै आपरै ख़ुद रै वंस रौ नांम देवण अें, मज़बूत-काठौ काळज़ौ चाहिजै..लोगां रै मुंडा सूं निकळयोड़ा ओछा सबद भी सुणन्ना पड़्या करै!
मोहल्ला रा लोगां रै कांई जावै..? भळा मिनख़ां री इज़्ज़त उछाळण ख़ातर लापा-लप करती लालकी नै बारै काडणी औरुं कांई...? बस ई तरै व्यानै हफ्वात रौ मसालौ परो मिळै अर अै निक्कमां मिनख़ आपरौ बख़त सोरौ काट सकै...क्यूं क “अल्लाह-पाक री इबादत करण में इण लोगां नै आपरा गोडा घिसणा पड़े अर चांदी चाखणी पड़ै..अर, हफ्वात करण मअें खाली लालकी नै बारै काडणी पड़ै..फेरूं, इण सिवा इयांनै कांई चाहिजै..? 

इण बख़त लचका महाराज जीवता हा, अर कुवांरा रैया सूं व्यारै कोई औलाद नि ही.. वे जद इण मामला नै दैखियौ, दैखतांई लचका महाराज रै हिवड़ा मांय बैवतौ दया रौ समंदर उमड़ पड़ियौ! वे किन्नी परवाह नहीं कर नै, इण नवज़ात छोरा नै पालणौ चालू करद्यौ! औ छोरौ इण किन्नरां रै बिचै ई, बड़ो हूवतौ गियौ! मोटौ व्हेतौ-व्हेतौ इण लोगां कन्नू नाच-गाणे री सगळी कलावां सीखग्यौ! लचका महाराज तौ थोङा बख़त पछै धाम पधारग्या, अर औ छोरौ इण किन्नर मंडली रै बिचै मोटौ व्हेतौ गियौ! रशीदा जान नै इण छोरा ऊं घणौ लगाव हौ, वौ तौ ख़ुद इन्नै आपरौ बेटौ मानतौ...इण कारण औ छोरौ भी उस्ताद लचका महाराज अर उस्ताद रशीदा जान रै तरै, तबला अर ढोलकी बजावण में पारंगत व्हेग्यौ...अर, औ भी किन्नरां री मंडली रै साथै-साथै जजमानां रै घरै जावातौ रयौ! लचका महाराज इण छोरा रौ नांम राखियौ हौ, “मोती”...पण, सगळा किन्नर इन्नै लाड ऊं “मोत्यो” नांम सूं इन्नै पुकारता! 

अबार औ ढोलकी बजावण वाळौ, औ इज़ छोरौ “मोत्यो” है! हमै इन्नी ढोलकी री थाप माथै, रशीदा जान सगळा किन्नरों रै साथै-साथै नाचतौ-नाचतौ गावण ढूकौ क “गुमाना हालीजी म्हारी मानौ मस्ताना हालीजी! रात अंधारी झुक रहीजी, कहां रे धरिया नाङा, जेवङा, हां रे हालीजी! कहां रे धरिया छै दांता-फ़ास, गुमाना हालीजी! म्हारी मानौ मस्ताना हालीजी, रात अंधारी आभा झुक रहीजी!!”
हमै गुलाम खां साब आंती आय नै ज़ोरां सूं बोल्या “म्हारी बैन रशीदा, क्यूं अठै म्हने तंग करै..? थारै मनङा री बात कैय दे, क्यूं नाराज़ व्है नै रोळा करा रयी है..?” हमै रशीदा जान रै कानां मांय, गुलाम खां साब री आवाज़ सुणीजण मअें आवै! औरुं, पछै कांई...? झट गाणौ गावणी बंद कर नै मोत्या नै ढोलकी नहीं बजावण रौ हुकम परो दीधौ! हमै मोत्यो ढोलकी माथै थाप देवणी बंद कर दीवी, किन्नर नाचणौ बंद करद्यौ...च्यारुमेर सायंती व्हेग्यी!                                                                                                                          
गुलाम खां साब अबै कैवण लागा क “दैख रशीदा, बे हज़ार रिपिया घणा है! थन्नै म्हारी हैसियत ठाह है, पछै उण मुताबिक़ रिपिया क्यूं नी मांग रयी है..?” “रिपिया कम कै बत्ता”..? आ बात सुणन री व्हिनै आस नहीं ही...व्हिनै तौ हिवड़ा मांय औ सूल चुभ रियौ हौ   क “औ खोज़बळियौ कीकर भूलग्यौ आ बात क “मैं बरसां सूं इन्नै साथै, बैन रौ रिस्तौ निभावती आ रयी हूं...?” पछै कांई..? रीस्यां बळतौ मुंडा ऊं आकरा सबद काडण ढूकौ क “दैखौ गुलाम खां साब, जित्ता और लोगां कन्नू रिपिया लेवां, वित्ता इज़ रिपिया थाणै कन्नू मांगीया हा!” इत्तौ कैय नै रशीदा जान व्यारौ मूडौ दैखण लागग्यौ! व्यारै मुंडा री रंगत उड़ती दैख नै, वौ पाछौ कैवण ढूकौ क “लचका महाराज जठै तांई जीवता हा, कदेई सुगन लेवण नै थाणी हवेली मांय पग नहीं धरियौ! वै अम्मीजान नै आपरी बैन मानता हा! जिण सूं म्हूं भी भळै थाणी बैन हूवण रौ रिस्तौ निभावती आ रयी हूं! अर, आज़ म्हूं औ रिस्तौ निभा नहीं रयी हूं....कांई आ इज़ बात, गुलाम भाईजान थे थाणा मुंडा सूं कैवणी चावौ कांई..?” इत्तौ सुण नै गुलाम खां साब नीची धुण घाल्यां यूं कैवण लागा क “बैन रशीदा, औ रिस्तौ थन्नै निभावणौ चहिज़तौ...” 

हमै रिस्ता निभावण री बात आयग्यी, ज़रै रशीदा जान रिङकता साण्डिया रै तरै भड़क नै बोल्यौ क “थां अजेतांई रिस्तौ निभावता आ रिया हौ, कांई...? रिस्तौ तौ थे तोड़ न्हाख्यौ, हाय..हाय.. म्हारै भतीजा रौ ब्याव रचायौ...अर, म्हने इज़ बुलावणी भूलग्या...सरासर..? अरे सा.. थे तौ म्हने कूंकूं पतरी भी देवणी भूलग्या..? इण वास्तै हमै, थानै भुगतणौ तौ पड़ेला इज़!”

हमै बिचारा गुलाम खां साब, बुरा फंसिया! हमै, वै कांई जवाब देवै...? अै तौ च्यारुमेर ओळबा सूं घिरग्या! छेवट देण मिटावतां, औ जुमला परो बोल्या क “परसूं पधार जाइजौ, दुल्हन रै पीहर वाळा आवेला पग फेरा री रस्म सारुं! उणां रै कन्नै ऊं थाणै नेग रा रिपिया दिराय देवूं!” औ सुणतांई रशीदा जान रौ काळज़ौ परो बळियौ! व्हिनै तौ अै सबद सुणन री आस ई कोनी ही..? व्हौ खीज़तौ कैवण लागौ क “म्हां लोग दुल्हन रै पीहर वाळां कन्नू नेग रा रिपिया लिया नी करां, म्हा लोगां रा भी उसूल व्या करै.. खां साब, औ भी भूल्या मती करौ थाणा रिवाज़..? बेटौ थाणौ पनिज़्यौ है, व्यारौ कोनी पनिज्यौ है...?"   
  
छेवट, काया परा व्है नै, कांन पकड़ नै गुलाम खां साब बोल्या क “बैन रशीदा, अबै भूल नै भी थन्ने कदेई नहीं भूलांला, भले घर में कांम चोखो व्हौ कै ख़राब!” इत्तौ कैय नै, गुलाम खां साब इण रशीदा जान सूं मुआफ़ी परी मांगी! छेवट इत्तौ सुण नै, रशीदा जान राज़ी व्यौ, अर नयी दुल्हन नै आपरै कन्नै बुलाय नै व्हीनी बलायां लीवी अर पछै व्हिनै घणी आसिसां दीवी! अर व्हिना बोसा लेय नै मुंडा-दिखायी रा इक्यावन रिपिया उण रै हाथ में दीधा! दुल्हन कन्नै ऊबी गुलाम खां साब री जवान छोरी नसीबा नै दैख नै कैवण लागौ क “भाईजान, हमै तौ आपांणी बाया सयानी व्हेग्यी है, इन्नौ ब्याव मांडौ ज़रै म्हने बुलावणौ भूलजौ मती!” अर पछै व्हीना बोसा लेवतौ, व्हिनै यूं कैवण लागौ क “बाया, थाणौ नांम कांई है..? व्हा लचका पड़ती बोली क “नसीबा..”

इत्तौ सुणतांई वौ दूजौ सवाल दाग दियौ क “कोलेज में पढौ कांई, नसीबा बाईसा...?” छोरी सुणतांई सरम करती, झट नीचै मूंडौ कर नै आपरै कमरा मांय भागग्यी!

इण वाकया नै बीत्यां दो महिना व्हेग्या, हमै अगस्त रौ महिनौ लागौ! केई दिणां ऊं बरसात लगालग व्हेती जा रयी ही, रुकण रौ नांम ई नहीं लेवती! सिंझ्या पड़गी!, पण अजेतांई पांणी बरसणौ व्यौ नहीं बंद! चाणचूकै सायरी बाई नांम रौ हिंज़ङौ आपलिज्योङौ हिज़ङा री हवेली मांय बङियौ, अर रशीदा जान नै हळबळावतौ कैवण ढूकौ क “रशीदा बाई, थे की सुण्यौ..? क..”                                          
“पैला थे आराम सूं बैठ जावौ, दम खाय नै पछै सायंती सूं ठीमरास लाय नै कैवौ क कांई बात है..?” रशीदा जान ठीमर सुर में बोल्यौ! 

सायंती धार नै वौ. रशीदा जान रै कन्नै गोडा ऊं गोडौ अड़ा नै बैठग्यौ! मोत्यो झट ऊठ नै, ग्लास पांणी भर नै ले आयौ! पांणी पिय नै सायरी बाई बोल्यौ क “मैं गुलाम खां साब रा मोहल्ला ऊं आ रयी हूं, मै औ सुण नै आयी हूँ क आज़ दिण रा धोळा च्यानणा में गुलाम खां साब री छोरी नसीबा री इज़्ज़त कोई हरामी लूट लीवी!” 

आ बात सुण नै, कन्नै बैठौ मोत्यो सकता मअें आइग्यौ ! वौ धूजतौ-धूजतौ कैवण लागौ, क “दोपारा रै ढाई बजिया आ नसीबा यातीमखाना री लारळी सूनियाङ ग़ळी ऊं गुज़रती ही, उणी टैम औ दिलावर रौ भतीजौ सुल्तानियो व्हिनै लारै-लारै गळी में घुस्यौ हौ! म्हूं उण बख़त अेकलौ हौ, कांई कर सकतौ..? वौ तौ इण मोहल्ला रौ, गुंडौ नंबर अेक ठेरियौ!” औ सुणतांई काळज़ौ बळतौ रशीदा जान व्हिनौ गिरेबान पकड़ नै यूं कैवण लागौ क “बता, फेरूं कांई देख्यौ...?” मोत्यो घबराय नै यूं कैवण लागौ क “की नहीं सा, म्हूं तौ पाछा ऊंदा पग न्हाट नै आइग्यौ सा हवेली!” हमै अैङी बात सुणतां ई, रशीदा जान रौ गुस्सौ सांतवा आसमान में जाय पूगौ! पछै कांई ...? व्हौ झप्पीङ करतौ, मोत्यो रै गालां माथै झापड़ परो मेल्यौ अर चिरळाय नै बोल्यौ क “aअरे हिंज़ड़ा..थूं तौ सफ़ा-सफ़ कायर निकल्यौ...? गुलाम खां साब री हवेली सूं आपांणौ कांई रिस्तौ है..? थूं भूलग्यौ, कांई ..? अरे हितंगिया, नसीबा रै लारै-लारै थूं बळतौ तौ औ खोटौ कांम नहीं व्हेतौ..!” पछै सायरी बाई खन्नी मूंडौ कर नै यूं कैवण लागौ, क “गुलाम खां साब समझदार है, सायत वै पुळस में रपट लिखा दी व्हेला..? तौ मैं औ समझूं, अबै औ सुल्तानियौ ज़रूर मरेला..!”

“आ इज बात मैं कैवणी चावती ही, अरे बीबी कांई कैवूं थानै... क, वै अजेतांई रपट लिखाई कोयनी है...थाना में जाय नै!” सायरी बाई बोल्यौ!                                                                                                               
आ बात सुण नै, रशीदा जान नै घणौ रंज व्यौ, पछी कांई? वौ तौ झट मोत्या रौ हाथ पकड़ नै झट पूगग्यौ गुलाम खां साब री हवेली! उठै सैंग जणां मूंडौ उतरयोङा बीच चौक में बैठा हा! नसीबा गोडा मांय मूंडौ घाळ्योङी बिळख़-बिळख़ नै रोवती ही! वौ कन्नै जाय नै नसीबा रै माथा माथै हाथ फेरतौ, यूं कैवण लागौ क “कांई, औ दुस्टी सुल्तानियौ इज़ हौ...?   
                         
नसीबा औ सुण नै, हूंकारौ भरती आपरी घांटकी परी हिलाई! हमै औ वाकयो पाछौ याद आवतां ई, वा आपरै नैणा सूं आऊंङा ढळकावण लागी! 
          
ई तरै व्यानै लोगां नै कायर ज्यूं चुप-चाप बिराज़्या देख नै, व्हिनौ तौ खून उबाळा खावण ढूकौ! झट गुलाम खां साब नै कैवण ढूकौ क “भाई जान चालौ, पुळस में रपट लिखाय नै आय जावां! ज़रूत पड़ी, तौ मोत्यो गवाही परी देवेला!”  
        
गुलाम खां साब आप रै हिवड़ै रा “शकिस्ता दिल” नै, हमै कीकर संभाळै..? अबै तौ नैणां सूं तिफ्लेअस्क ढळकण लागग्या, पछै ख़ुद री बेबसी रौ अहसास कर नै वे लगा-लग रोवण ढूका! थोड़ी वळा पछै रुन्दता ग़ळा ऊं कैवण लागा “दैख रशीदा बैन, हूवणौ जिकौ व्हेग्यौ! इण छोरी नै तौ हमै अल्लाहताला भी पाछौ वैङौ नहीं बणा सकै, जैङी आ पैली ही! थूं जाणै, औ सुल्तानियो ठेरियौ मोहल्ला रौ गुंडौ नंबर अेक, इन्नौ आपां की नहीं बिगाड़ सकां...पछै म्हारी बैन, थूं क्यूं म्हारी जग-हंसाई करावै है..आ रपट लिखा नै...?”

रशीदा जान घणी ताळ व्यानै समझावतौ रयौ, पण की फ़रक़ नी पङियौ...पछै कांई..? बात वा इज़ व्हेणी ही, वै इज़ ढ़ाक रा पत्ता तीन, औरुं कांई..? गुलाम खां साब तौ टस सूं मस नी व्या! छेवट पग पटकतौ, रशीदा जान मोत्या नै साथै लेय नै पाछौ वहीर व्हेग्यौ! इण वाकया नै हुया, पांच दिण बितग्या! छठा दिण सिंझ्या री वेळा यतीमखाना री पूठली गळी मांय, लोगां नै औ सुल्तानियो बेहोस व्योङौ मिळ्यौ! 
                                                          
थोड़ी वळा पछै, बठै पुलस आयी, तहकीकात कीधी! अर, सुल्तानिया नै अस्पताळ में भरती परो करायौ! चोखी बात तौ कदेई ख़बरां रौ मुद्दौ बणै कोयनी, पण भूंडी बातां सूं ख़बरां रौ बज़ार ज़रूर गरम व्है जाया करै! हमै मोहल्ला मांय ठौड़-ठौड़ आ बात फैलग्यी क “कोई इण पापी नै बधिया कर नै उण रै पाप री सज़ा भळै दे दी है! च्यारुमेर अै बातां इलाक़ा में फैलग्यी, जिण सूं इण सैतान रै काका रौ दबदबौ आपौ-आप ख़तम व्हेग्यौ! थोड़ा दिण बित्यां पछै, औ सुल्तानियो अस्पताळ सूं छुट्टी पाय नै बारै आयौ! इन्नै बारै आवतां ई, लोगां नै खिलकौ करण रौ नुवौ साधन मिळग्यौ! हमै अै लोग इण पापी रै मुंडा-मूंड, इन्नै चींचावणौ चालो करद्यौ! व्हिनै गुज़रती पांण व्हिनै “हिंज़ङौ...हिंज़ङौ कैय-कैय नै चिङावण लागग्या! इण तरै जमी-जमाई साख़ हमै धूङ में परी मिळी! अबै तौ उलटी बात व्हेग्यी, पैला कदेई इण पापी सुल्तानिया रौ आंतक लोगां रै दिल मांय छायोङौ रैवतौ...अर हमै, लोगां रौ डर इण सुल्तानिया रै माथै छायोङौ दीसण लागग्यौ!

हमै तौ आ हालत व्हेग्यी, क औ किन्नै ई मिनख़ नै दैखै, अर औ नीची नाड़ घाळ नै बठै सू निकळण मअें आपरी भलाई समझण लागग्यौ! लोग तौ इन्नै दैख नै औ कैवण लागग्या, क “अै दैखौ सा, अै कालै रा केसरी सिंग नार, हमै सियाळ्या बण्योङा पधार रिया है...सावधान!” ख़ुदा री पनाह, हमै तौ औ सुल्तानियो अैङौ समाज सूं कटग्यौ क कोई मिनख़ इन्नै मूंडौ नहीं लगावै! अगर कोई भूल-चूक ऊं इन्नै बतला भी ले, तौ उण मिनख़ रै पाह्ड़े बैठा दूजा मिनख़ व्हिनै औ कैय नै टोक देवै क “कांई करै रै, गेलसफ़ा..? इण हिङकिया कुत्ता नै कांई छेड़े...? जित्तै कोई तीजौ भायलो बिचै परो बोले, क “अरे सा, औ हिङकियौ कुत्तौ कोयनी है, औ तौ है नाज़र! थाणै बेटा री सादी मांय बुला दीजौ, नाच नै परो जाई!” 

ई तरै इन्नै चींचावता, अै लोग रोज़ खिलका करण लागग्या! पण उण बख़त इन्नौ जीव घणौ बळ जावतौ, ज़रै कोई इन्नौ पुराणौ चेलो कै इन्नौ चमचौ इण खिलका मांय भेळौ हुय नै चींचावणौ चालू कर देवतौ...! छेवट औ सुल्तानियो कायो परो व्यौ, हमै व्हौ बोलै-चालै किन्नू..? समाज बिण, किन्नौ ई मिनख़ रौ कांम चालै कोयनी! पछै कांई..? औ सुल्तानियो बेबस हालत मअें जाय पूगौ, हिंज़ङा री हवेली! दूजा दिण मोहल्ला मांय आ ख़बर फैलगी क “सुल्तानियो सांचाणी रौ हिंज़ङौ बण गियौ है, अर इन्नै रशीदा जान आपरौ चेलौ बणाद्यौ है! हमै औ, सरदारी बाई रै नांम सूं ओळख़ीजण लागग्यौ है!”  



गाड़ी पटरियां रै माथै सरपट तेज़ रफ़्तार सूं दौड़ रही है! कबीन मांय बैठ्यौ रशीदा जान किस्सौ ख़तम कर नै, लम्बी सांसा लेवण लागग्यौ! थोड़ी बिसांई खाय नै, पछै वौ कैवण लागौ क “समधी सा, आ बात थे समझ लौ! संवेदना अर तख़ालुफ़ करण री हीमत अबै उण मिनख़ां में रैयग्यी है....जिका, ख़ुद आधा-अधूरा है! अर आपरौ पेट भरण सारुं, नाच-गाणा कर नै आपरौ मनोरंजन करता आ रिया है! सच्ची बात आ इज़ है, अै समाज रा सम्मानित-मिनख़ दरअसल गुंडा-बदमासां ऊं डरता जा रिया है...अर, अणजाणै में अैङा गुंडा-बदमासां नै बधावौ देवता आ रिया है क जिन्नौ परिणाम बौत बुरौ व्है! इयांरै इण तरै अणजाणै में बधावा दिया सूं, इणांरीज़ बहू-बेटियां भुगतै! हमै बोलौ सा, समधीसा हिंज़ङौ कुण..? अै कै वै..?                                                                   

हमै रशीदा जान तौ ताळी बजावातौ, गियोपो आगला केबिन रै मांय! औरुं लारै छोड़ग्यौ सरणाटौ! इण सरणाटां नै तोङतां थकां सगळा जणां रै कानां मांय रशीदा जान रा अै सबद गूंजण लागा क “हिंज़ङौ कुण...? अै कै वै...?"

कठिन शब्द [१] लचकाणौ पङै = आब-आब होना, शर्मसार होना, [२] तजवीज़ करना = निर्णय लेना [३] भाळता = देखते हुए [४] ठठो लगाय नै = ठहाके लगाकर [५] धरती कंप = भूकंप आना, धरती का ढूजना, धरती में बड़ी-बड़ी दरारें आ जाना [६] नीची नाड़ = आब-आब sहोकर नीचे देखना [७] तख़ालुफ़ = विरोध जताना                         
 

लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित

रैवास – अँधेरी-गळी, आसोप री
पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला,
जोधपुर. [राजस्थांन]
ई मेल
dineshchandrapurohit2@gmail.com

 

0 टिप्पणियाँ:

जीवन परिचय...पुस्तकालय...
Photobucket

साहित्य शिल्पी को योगदान दें...

साहित्य शिल्पी एक पूर्णतया अव्यावसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसके सफलतापूर्वक संचालन हेतु आपका रचनात्मक तथा वित्तीय सहयोग अपेक्षित है। इसके लिए आप अपनी रचनाएं हमें भेजने के साथ साथ अपने और अपने परिचितों के विज्ञापन साहित्य शिल्पी को प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं। यदि आप किसी अन्य तरीके से हमें सहयोग करना चाहें तो भी आपका स्वागत है।

आप अपने विज्ञापन या रचनाएं भेजने अथवा किसी अन्य संदर्भ मे हमें इस ई-मेल पते पर संपर्क कर सकते हैं:

sahityashilpi@gmail.com

.....आईये कारवां बनायें....

©सर्वाधिकार सुरक्षित- "साहित्य शिल्पी " एक अव्यवसायिक साहित्यिक ई-पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। प्रकाशित रचनाओं के विचारों से "साहित्य शिल्पी" का सहमत होना आवश्यक नहीं है।

किसी भी रचना को प्रकाशित/ अप्रकाशित करना अथवा किसी भी टिप्पणी को प्रस्तुत करना अथवा हटाना साहित्य शिल्पी के अधिकार क्षेत्र में आता है।