छाँव भी लगती नहीं अब छाँव [कविता] - लाला जगदलपुरी

हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / चेतना को गति मिली स्वच्छन्द, / हादसे, देने लगे आनंद / खिल रहे सौन्दर्य बोधी फूल / किंतु वे ढोते नहीं मकरंद। / एकजुटता के प्रदर्शन में / प्रतिष्ठित हर ओर शकुनी-दाँव। / हट गये पगडंडियों से पाँव / लो, सड़क पर आ गया हर गाँव। / आधुनिकता के भुजंग तमाम / बमीठों में कर रहे आराम / शोहदों से लग रहे व्यवहार / रुष्ट प्रकृति दे रही अंजाम। / दुखद कुछ ऐसा रहा बदलाव / छाँव भी लगती नहीं अब छाँव। आगे पढ़ें... →

कवि डा. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ जी के सान्निध्य में - डा॰ महेन्द्रभटनागर

ग्वालियर-उज्जैन-इंदौर नगरों में या इनके आसपास के स्थानों (देवास, धार, महू, मंदसौर) में वर्षों निवास किया; एतदर्थ ‘सुमन’ जी से निकटता बनी रही। ख़ूब मिलना-जुलना होता था; घरेलू परिवेश में अधिक। जा़हिर है, परस्पर पत्राचार की ज़रूरत नहीं पड़ी। पत्राचार हुआ; लेकिन कम। ‘सुमन’ जी के बड़े भाई श्री हरदत्त सिंह (ग्वालियर) और मेरे पिता जी मित्र थे। हरदत्त सिंह जी बड़े आदमी थे; हमारे घर शायद ही कभी आये हों। पर, मेरे पिता जी उनसे मिलने प्रायः जाते थे। वहाँ ‘सुमन’ जी पढ़ते-लिखते पिता जी को अक़्सर मिल जाया करते थे। ‘सुमन’ जी बड़े आदर-भाव से पिता जी के चरण-स्पर्श करते थे। लेकिन, ‘सुमन’ जी में सामन्ती विचार-धारा कभी नहीं रही। आगे पढ़ें... →

भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति [आलेख] - डॉ. काजल बाजपेयी

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मैं बचपन से दो प्रकार की संस्कृतियों के बारे में सुनती आ रही हूँ। भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति या अंग्रेजी संस्कृति।  आगे पढ़ें... →

आख़ा ख़लक़त में भांग न्हाख्योड़ी..? [ मारवाड़ी कहानी ]- - दिनेश चन्द्र पुरोहित


 दिनेश चन्द्र पुरोहित रचनाकार परिचय:-
लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com अँधेरी-गळी, आसोप री पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला, जोधपुर.[राजस्थान]
मारवाड़ी कहानी “आख़ा ख़लक़त में भांग न्हाख्योड़ी..?” लेखक - दिनेश चन्द्र पुरोहित  
रशीद भाई दफ़्तर जावता हा, उण बख़त व्यांरौ बख़त अराम सूं कट जावतौ हो ! पण हमै रिटायर व्या पछै ओ बख़त काटणौ व्हेग्यौ मुस्किल ! पछै अबै कांई करै, भईसा ? बिचारा जुगत लड़ा परा नै, बख़त काटण रौ अेक नुवो तरीको इज़ाद परो करियौ ! क, आख़ा दिण यार-दोस्तां रा दफ़्तर में जावणौ...अर उठै आराम सूं बैठ नै टाइम पास करणी, अर साथै-साथै मनुआर रा मिरची बड़ा नै कलाकंद बड़ा प्रेम सूं ठोकतौ रेवणौ ! घरै आयां पछै, अगर बीबी रोटी-बाटी रौ पूछै...तौ भाई साहब नै ओ अेक इज़ जवाब देवणौ व्है क “बेग़म क्या खाएं ? यहां तो हर रोज़ तुम बनाती हो, पतली दाल और लुकी रोटियां ! आज़कल ये रोटी-दाल रंजती नहीं ! अब तुम बताओ बेग़म, क्या करूं, आख़िर ?” 


 ई तरै व्यांरौ दफ्तरां मांय जाय नै आपरा सगा-सम्बंधियां सूं मिळणौ, अर व्यां कन्नै बिराज़ नै हफ्वात हांकनी, चाय-चूई पिवणी...ओ सगळौ कांम इयांरी डैळी रूटीन रौ भाग बण गियौ ! अबै अै खां साहब, उणां री तकळीफां नै दूर करण सारुं..बिना मांगी सल्ला व्यानै देवण लागग्या ! 

 पण बन्दा रै माथै अल्लाह री मेहरबानी ही, क व्यांरी बतायोड़ी सल्लावां सूं लोगां नै घणौ-घणौ फ़ायदौ हूवण लागग्यौ ! पछै कांई ? अल्लाह पाक री मेहरबानी अैड़ी व्हिसा..क जिका ई दफ़तर में अै जावता, उण जगा रा लोग-बाग़ इयांनै मनवार कर नै इयांरी मनपसंद मिठाई कलाकंद अर मिरचीबड़ा बाज़ार सूं मंगवाय नै खिलावण लागग्या ! 

अेक दिण री बात है, अै भईसा सबाह-सबाह तिपड़े पूग नै चैलक़दमी करता हा ! उणी बख़त इयांनै बीबी रौ हेलो सुणीज्यौ ! बीबी कैवती ही, क “औ शहज़ाद के अब्बा ! ज़रा, हेटे उतर कर आइयो !” औ सुण नै रशीद भाई बोल्या सा, क “आ रिया हूं, बेग़म !” इत्तौ कैय नै, वे नाळां उतर नै आया हेटै ! हेटै आय नै बोल्या सा क “अरी, बेग़म ! क्या करती हो तुम ? तुम्मे डागदर साब नै आंचे बोलने का मना किया था, फिर भी आंचे बोलकर रोग को बढ़ा रयी हो तुम ?” 

औ सुणन्नौ, हसीना बी नै कीकर पसंद आवै..? वे तौ आंख्यां तरेरता, ज़ोरां सूं बहु-बेग़म नै हेला पाडतां यूं कैवण लागा, क “अरी, ओ दुल्हन ! इधर आय के देखियो, तेरे ससुर को ! तेरे मामूजान के इन्तिकाल पे, सबाह नौ बजे जनाज़े में क़ब्रिस्तान पहुंचे नहीं ! अब तो ये उनके रिहाईसगाह पे, ताज़ियत की बैठक में हाज़री भी देने नहीं जा रहे हैं ! अब हम सब, न्यात में भूंडे लागेंगे ! की सुन्या कै नहीं ?” हमै अठै रशीद भाई नै औ कीकर पसंद आवै, क कोई इयांरी भूलण री आदतां नै बहु-बेग़म रै साम्ही चवड़ी करै..? बिचारा डरता थकां कैवण लागा, क “क्या कर रही हो, बेग़म ? की तो ससुर की इज़्ज़त रेवण दो, दुल्हन के साम्ही !” 

जित्तै भांडा पङवा री आवाज़ हुवै ! औरुं पछै दुल्हन री आवाज़ कानां मायं पड़ै, क “बरतन धो रही हूं, अम्मी ! मैने की सुना नहीं, ज़रा आंचे से बोल दो !” इत्तौ कैय नै, दुल्हन तो पाछी भांडा धोवण लाग जावै ! अठै घर मांय कुण है निक्क्मौ मिनख़, जिकौ हसीना बी री बात कै ओळबा सुणेला..? अेक ख़ाली शौहर नांम रौ अैङौ जीव ठेरियौ क उण बापड़ा नै आपरी बीबी री बातां बोलो-बोलो बैठ नै सुणनी पड़ै ! इण कारण अबै हसीना बी आडी मेल्योड़ी चौकी नै सीधी मेल नै, उण माथै बिराज़ै ! औरुं पछै कैवण लागै, क “अबै सायंती सूं सुणजौ, शहज़ाद के अब्बा ! बात यों है के, हम सगे-सम्बंधियों के बीच में भूंडे लागेंगे...नी गिया तो ? अजी, तुम क्या जानते हो, लुगाइयां की बातें ? कल रशीदा की सास आई थी, लूणी से ! कैय रही थी, क “शहज़ाद की अम्मी ! तुमको पता नहीं, क कई लुगाइयां मय्यत की बैठक में नीम्बड़े की तरह बाड़ी बोल के तुम्हारे घर की पंचायती कर रयी थी, हाय अल्लाह मेरा माथा दुकाद्या बक-बक कर ! क, मामू के ख़ाली अेक इज़ भाणजी है ! पण उसके सासरे से कोई नहीं आया ! अबै आगे क्या कहूं, तूझे ? उनकी तो कतरनी की तरह ज़बान चल रही थी !” अबै शहज़ाद के अब्बा तुम ई सोचो, क आज के दिण नी गिया तो तुम भूंडे लगोगे !” इत्तौ कैय नै, हसीना बी तौ चुप व्या ! इत्तौ सुण नै, रशीद भाई रै हिवड़ै मायं उथळ–पुथळ मचण लागी ! क, आज तौ वे दीनजी भा”सा अर सावंतजी नै सुमेर पुस्तकालय मिळण सारुं बुलायौ हो ! नौकरी करती वळा अै दोणू जणां, इयां रै साथै जोधपुर अर पाली बिचै रोज़ रौ आवणौ-जावणौ रेलगाडी सूं करता रैया हा ! हमार कालै अै रशीद भाई इण दोणां नै फ़ोन कर नै कैयौ हौ, क “कालै इतवार है, आप दोणू जणां सुमेर पुस्तकालय पधार जावौ ! बठै बगीचा मायं बैठ नै आपां आपांणी सुख-दुःख री बातां करां ! अर पछै, आगै पाछौ मिळण रौ भळै प्रोग्राम बना देवां!” 

पण, अठै तौ रशीद भाई औ सोचण लागग्या.. क, अठै तौ है म्हारा करम फूटोङा ? क्यूं क अबै ओ लूणी जावण रौ अलील, माथै आय पङियौ ! अबै तौ म्हारी मति मारी गयी, इण दोणां नै पाछा समनचार करना पड़ी क भईसा थे दोणू सुमेर पुस्तकालय पधारजो मती ! पछै, कांई ? रशीद भाई झट ऊठं नै, दोणू जणां नै फ़ोन लगाय नै कैयद्यौ क भळै फेरूं कदेई मिळां ! अबै फ़ोन करियां पछै बेग़म नै समझावता यूं कैवण लागा, क “मैं स्नान करन्नै घुसल खाना मांय जाय रियौ हूं, जित्तै आप चाय-नास्ता री त्यारी करौ !” पण हसीना बी पाछा यूं कैवण लागा, क “फिर रोटी-बाटी खाकर ही जाणा !” पण हमै रशीद भाई आगै क्यूं सुणै ? व्यांरौ किसौ मतौ, अठै रोटी-बाटी खावण रौ ? इणां रै वास्तै तौ घर की मुरगी दाळ बराबर, अै दाळ-रोटी तो रोज़ ई खाणी है ! हमार तो दोस्तां के यहां जीमेंगे, माल-मसाला ! औ सोच नै यूं कैवण लागा क “बेग़म, तुम तकल्लुफ़ काहे करती हो ? लूणी में, केई यार दोस्त मिळण वाले हैं ! कहीं जीम लेंगे, बेग़म ! तुम फ़िक़र मती करो !” इत्तौ कैय नै रशीद भाई गाबा ले नै घुसल खाना मायं बड़ जावै ! अर मायं नै बङ नै, वे यूं कैवता जावै क “बेग़म वैसे भी पेट मांय कुङ-बुङ हो रिया है, आज़कल तुम मसालेदार सब्जियां खूब ठोका रयी हो !” इत्तौ कैय नै, वे टूटी खोल नै खंखोळा खावण लाग जावै ! व्यानै अठै, कांई पड़ी ? लारै ऊं कुण कांई बोलतौ जावै..? बिचारा हसीना बी तौ रिस्यां बळतां, भीतां नै सुणावता कैवता जावै क “ख़ुद मियां जिद्द करके तीखी मसालेदार सब्जियां बनवाते हो, तैल की तरी नी दीखते ही थाळी छोड़ कर उठ जाते हो ! हाय अल्लाह ! अईसा ख़सम पान्नै पड़िया मेरे, अब क्या करूं...क्या नहीं करूं...? यह तो, अल्लाह पाक जाणै !” 

अठी नै गळी में पङोसी दड़बा सूं मुरगियां बारै काडण लागौ, अर पछै दडबा री सफ़ाई करण ढूकौ ! सफ़ाई करती वळा धूड़ो अर मुरगियां रा पंख बायरा मांय उङन लागा, आ खकं हसीना बी रै नाक मायं बङग्यी ! पछै, कांई ? व्यारै तौ छींका री झड़ी लाग जावै, अेक तौ बिचारा हसीना बी दमा रा मरीज़...अर ऊपर सूं व्यानै चाल रियौ हो, मौसमी बुख़ार..! इण कारण उणां नै अेका-अेक व्है जावै, दमा री सिकायत..! अबै बिचारा खांसता-खांसता बरसाळी रौ ओडाळियोड़ौ दरुज़ौ खोलै, ताकि की ताज़ी हवा खाय सकै ! पण दरुज़ौ खोलतां ई, बारै चौंतरी माथै बैठी अैक अज़नबी रोवणकाळी लुगाई बोबाड़ा काडती ज़ोरां ऊं रोवण ढूकी ! अेक वळा तौ हसीना बी री त्योंरियां चढ़ण लागी क “म्हारै घर में किन्नी मरगत व्ही है..जिकौ आ गैळसफ़ी बोबाड़ा काड नै रोवती जा रायी है, म्हारै घर रै बारै..? पण अठै तौ बात की दूजी व्हेग्यी, हसीना बी नै देखतां ई वा उणां रै कन्नी आय नै व्यारै पगां नैरी पड़गी ! ई तरै किन्नी अज़नबी लुगाई रै पगां पडतां ई, हसीना बी चमक नै आघा व्या ! पछै ख़ुदा जाणै, क्यूं उण गैळसफ़ी माथै दया आयग्यी उणां नै..? पछै कांई..? उण माथै रहम करतां, व्हिनै माथा माथै हाथ फेरण लागग्या ! माथा माथै हाथ फेरतां-फेरतां, उण लुगाई नै बरसाली में ले नै आयग्या ! हमै उठै मेल्योड़ी कुरसी नै पकड़ नै वा रोवणकाळी लुगाई बैठगी, अर पछै जार-जार रोवण ढूकी ! हसीना बी पांणी री ग्लास भर नै लाई ! पाणी पाय नै, हसीना बी पूछियौ क “बाई, थूं क्यूं रोवै?” हमै व्हा हिचकियां खावती कैवण लागी “आपा ! मैं बड़ा घर री बेटी हूं, म्हारौ भाई नासिर अहमद भदवासिया अस्पताळ कन्नै रेवै ! हमार दिल रौ दौरो पड़िया सूं वौ अेम.जी.अेच. अस्पताळ रै मांय अेडमिट है, म्हारै कन्नै अेक रिपियौ भी इलाज़ रौ है कोयनी ! हाय अल्लाह, अै डोगदर साब इलाज़ सारुं पांच हज़ार रिपिया री दवाइयां लिखी है ! अबै म्हूं कीकर लाऊं इत्तारा रिपिया, म्हारा बाप...? हमै बिना दवाइयां व्हौ मर गियौ, तौ म्हारी मां म्हूं किन्नै ई मूंडौ दीखावाण लायक नहीं रैवूं !” इत्तौ कैय नै, व्हा रोवणकाळी फेरूं रोवण ढूकी बोबाङा काड नै ! अर पछै, छाती कूटती-कूटती कैवण लागी “हाय मेरे मोला ! मैं पैली मर जाऊं, तौ चोखौ !” इत्तौ कैय नै, वा लुगाई झरा-झरा रोवण ढूकी ! उण लुगाई नै इण तरै कळपतौ देख नै, हसीना बी नै उण माथै घणी दया आवण लागी ! पण इण साथै आ फ़िक़र भी सालण लागी, क कठेई आ गैळसफ़ी रशीद भाई रै जावती वळा व्यारा सगुन ख़राब नहीं कर देवै ? औ सोच नै कमर में खोसयोड़ी रिपिया-पैसा री थैळी काड नै भालण लागग्या, क थैळी मांय अकूता रिपिया-पैसा है कै नहीं..? कठेई देवती पांण, रिपिया कमती नहीं पड़ जावै ? हसीना बी नै थैळी भाळता दैखतांई, वा रोवणकाळी हुय जावै सायंत..! अर पादरी-पादरी चुप-चाप बैठ जावै ! 

सिनान-संपाङा कर नै रशीद भाई घुसलखाना सूं बारै निकळ्या, अर पछै आला बालां मांय तैल घाल नै ओछण लागा ! बालां नै ओछतां-ओछतां हसीना बी नै यूं कैवण लागा क “हमै मैं नास्ता कर लूंगा, आप दस्तरख्वान सज़ा दो ! बस, दो मिनट में आ रिया हूं !” हसीना बी आपरा सौहर रा अै लखण नै, व्या नाराज़ ! पछै आकरा बोलण ढूका “देखो, शहज़ाद के अब्बा ! अेक बात कैय दूं आपको, अठै बैठके सावळ खाना खाय लौ ! फिर बाद में यार-दोस्तां के दफ़्तर में जाकर खाओगे, तो अल्लाह कसम भूंडा लागोगे ! मुझ को भी भूंडा दिखाओगे, लोग कहेंगे के लुगाई रोटी नहीं घालती होगी ?” 

हमै वा रोवणकाळी लुगाई उचक लट्टू ज्यूं उचकण लागी अर धीमै-धीमै हसीना बी नै कैवण लागी “आपा मोड़ौ व्है रियौ है, रिपिया करै दे रिया हौ ?” हसीना बी नै अेक वळा गुस्सौ तौ घणौ आयौ, क आ बावळी तौ यूं बोल रयी है क मानौ म्हूं इण गधेङी री बाकीदार हूं..? अबै वै आंख्यां काडता व्हिनै परो कैयौ क “बाई नैचो धार, इणके जाने के बाद दूंगी ! थूं अभी, यहीं बैठ !” इत्तौ कैय नै हसीना बी ऊठ्या, जाय नै नास्ता री थाळी परोसी ! अर पछै, रशीद भाई नै कैवण लागा “आ जाओ, शहज़ाद के अब्बा ! दस्तरख्वान लगा दिया है ! अबै खमीज़ अर पतलून पैर नै रशीद भाई बोल्या “आ रिया हूं, उतावळी क्यूं कर रिया हौ ?” इत्तौ कैय नै, रशीद भाई आय नै आसन माथै जमग्या ! दोणू हाथ आगै फैलाय नै बोलण लागा “बिस्मिल्लाहि रहमान रहीम !” इत्तौ बोल नै वे नास्तौ करण लागा ! ज्यूं ही नास्तौ कर नै ऊठिया अर भींत माथै लाग्योड़ी घड़ी टन टन करती सबाह री नौ बजण रौ अेलान परो कीधौ ! हमै हाथ धोय नै रशीद भाई तणी माथै लटकता अंगोछा सूं हाथ पौंछ नै हसीना बी नै यूं कैवण लागा “अरी बेग़म ! यह बरसाळी में बैठी मोहतरमा कौन है, और यहां क्यों आयी है ?” आ पूछ-ताछ, भळै अबै बेग़म नै क्यूं सुवावै ? वै तौ आंख्यां भौं चढ़ावता, आकरा बोलण ढूका “तुम्हारे देरी नी हुय रयी है, क्या..? जो लुगाइयों की बातों में अपनी टांग अड़ा रहे हो ?” रशीद भाई री ख़ैर समझौ, वे तो फटा-फट गांखडा माथै पड़िया बैग नै उठा नै वहीर हुया ! बरसाळी मांय पड़िया जूता पगां में घाल नै बोल्या “जा रिया हूं, लारै से बोल-बोल के सगुन ख़राब मती करना !” हमै व्यां नै रवाना व्हेतां दैख नै, हसीना बी भोळावण देवतां कैवण लागा “शहज़ाद के अब्बा ! ध्यान रखियो, सीधे दुल्हन के ननिहाल जाना, कहीं इधर-उधर किसी के दफ़्तर में भटका मती मारना ! मुझे तुम काली मत समझना, मैं सब ध्यान रखती हूं !” बेग़म री अै बातां सुण नै रशीद भाई तौ भाग छूट्या, अर रफ़्तार बढ़ा नै जाय पूगा भदवासिया फाटक रै कन्नै...! पछै कांई ? झट फाटक पार कर नै पूग गिया सड़क रै माथै, बठै ऊबी सिटी बस में जाय नै बैठ गिया ! थोड़ी वळा पछै, आ सिटी बस रवाना जावै ! प्लेट-फ़ोरम माथै पूगतां ई इयानै उदघोसक रौ अेलान सुणीज्यौ ! वौ कैय रियौ हौ क “मालानी अेक्सप्रेस सीघ्र ही प्लेटफोरम छोड़ने जा रही है ! सभी यात्री...” हमै इन्नू आगै सुणन ऊं कांई मुतलब ? अठै तौ व्यारै जीव में मची हळबळी, क किन्नी तरै पुळियौ चढ़ नै पूगां प्लेट-फ़ोरम माथै, अर उठै ऊबी मालानी अेक्सप्रेस रे मांय किन्नी तरै चढ़ जावां ! अबै तौ बिचारा, फटा-फट पहुङिया चढ़ण लागा ! पण, अबै पैली जैङी बदन मांय वा सरदा रैयी कोयनी...अठी नै सांसा री गति बधग्यी, हमै पुळियौ उतर नै गाडी कन्नी पग बढ़ावणा व्हेग्या मुस्किल ! अर अठी नै, ख़ुदा जाणै क्यूं आ गाडी सीटी परी मारी..! अबै रशीद भाई री हालत व्हेग्यी पतली, जित्तै गेला बिचै औ गैळसफ़ौ हिंज़ङौ रशीदा जान आय बळियौ...अर लेवण लागौ, बलेयां ! व्हौ केवण ढूकौ क “समधीसा! सिध पधारो सा ! आज़कल थे अर थाणा मिंत, गाडी में क्यूं नी दीस रिया है...? कांई थाणा साथी फुठरमलसा, हाज़ा तौ है ?” पण अै रशीद भाई कैन्नौ जवाब देवै, व्यां रै तौ लागोड़ी आपरै जीव री ! बस, पछै कांई ? वे तौ मारियौ, अेक धक्कौ..इण रशीदा जान नै..! अर पछै झट चढ गिया, डब्बा मांय ! अठी नै इण रशीदा जान रै, व्ही घणी कोज़ी! बापड़ौ टिल्लो खाय नै जाय पड़ियौ, कन्नै चालता चाय वाळां वेंडर रै माथै ! औ बापड़ो वेंडर आपरौ चाय पिवण रौ विसन पूरौ करण सारुं, भगोला रे मांय चाय रा उकाला लेवतौ हौ ! इण धक्का सूं व्हिनौ मूंडौ जाय घुसियौ भगोला रै मांय ! हमै, औ वेंडर पैला कांई बोलै ? उण सूं पैला औ रशीदा जान ऊठं परो नै, कैवण लागौ क “कांई भईसा, अेकला-अेकला चाय चाय पीवौ हौ...? कदेई म्होनै, चाय पिवन्नौ नैतरौ देवौ कोयनी..? ज़रे इज, आज़ थांनै भर भगोला चाय पिवन्नी पड़ रही है...भगोला मांय, मुंडा घाल नै !” इत्तौ कैय नै रशीदा जान आगै चालता हिंजङा रै झुण्ड मांय मिळ जावै ! जिका दूजा डब्बा रै मांय चढ़ रिया हा ! हमै गाडी रा गाड साब, हरी झंडी हिलावाण लागग्या ! रफ़्त: रफ्तः गाड़ी ठेसण छोड़ देवै ! थोड़ी ताळ पछै, आ गाडी नज़रां सूं अदीठ हुय जावै ! बख़त गुज़रतौ गियौ, सबाह बैगा ऊठ्योड़ा रशीद भाई नै नींद आवण लागै ! थोड़ी वळा में, वै खांच नै नींदा लेवण लाग जावै ! लूणी ठेसण माथै गाडी रै पूगतां ई, प्लेटफोरम माथै ऊबा वेंडर अर चाय री थड़ी वाळां ज़ोरां री अवाजां काडण लागा ! उणां री आवाज़ां सुण नै, रशीद भाई री नींद उछट जावै ! अबै अठी नै अेका-अेक औ कुलियां रौ झुण्ड डब्बा रै मांय बड़ै ! बिचारा रशीद भाई दरुज़ा कन्नी जावणी चाह्यौ, पण औ कुलियां रौ झुण्ड व्यां नै धक्कै बधण देवै कोयनी..! औ झुण्ड तौ धक्का देवतौ आगै बधतौ ही जा रियौ है...अबै किन्नी तरै, रशीद भाई डब्बा रै दरुज़ा तांई पूग जावै ! अर, वे हेटै उतरणी कोसिस करण लागै ! पण अठै तौ मांय नै बङतौ अेक कुली, अैङौ जबरौ निकळ्यौ क... जिकौ हेटै उतरतां रशीद भाई नै धक्कौ देय नै, मांय नै बङ जावै ! इण जवान कुली रा धक्का नै, अै डोकरा रशीदभाई कांई संभाल सकै...? ख़ुदा खैर करी, क हेटै पड़तां रशीद भाई रै हाथ-पगां री हड्डियां टूटी कोयनी ! ख़ुदा रै फ़ज़लो-करम सू, वे बिचारा प्लेटफोरम माथै ऊबा रशीदा जान माथै आय नै पङै ! बापङौ रशीदा जान अेक टिल्लो खाधौ जोधपुर ठेसण माथै, ई तरै हमै औ दूजो टिल्लो खायौ इण लूणी रा ठेसण माथै ! हमै हेटै पड़ियौ रशीदा जान बोंय-बोंय करतां थकौ ऊठ्यो, अर बोलण लागो ज़ोरां सूं क “समधीसा ! आज़ तौ टिल्ला ऊपर टिल्ला, मारतां जा रिया हौ..?” इत्तौ कैय नै औ रशीदा जान, आपरा गाबा सावळ करण ढूकौ ! गाबा सावळ कर नै व्हौ साम्ही जोयौ, तौ कांई देखै ? क, रशीद भाई तौ उठै कठेई नज़र नी आ रिया है ? 

साची बात तौ आ है क, हमै इयांरा अै समधीसा डरग्या के कठेई औ हिंज़ङौ पाछौ आय नै कळह करन्नै नी बैठ जावै..? जिन्नू वै तौ बठै सूं भाग छूट्या, औरूं बैग ल्योड़ा पौंछ गिया फाटक रै कन्नै ! पछै कांई..? फटकै ऊं फाटक पार कर नै, चालता-चालता सड़क रै माथै आय जावै ! हमै वै साम्ही जोयौ...तौ साम्ही चालता, बैंक मैनेज़र साब निज़र आया ! इयांरा मोटा भाई काज़ी सईद अहमद सिद्धकी, रशीद भाई रा ख़ास मिंत ठेरिया ! इन्नारा दीदार व्हेतां ई, रशीद भाई व्यां नै हेलौ पाड़ नै यूं कैवण लागा क “जनाब, असलाम वालेकम ! ख़ैरियत है..?” सुण”र मैनेज़र साब लारै भाळ्यौ, अर पछै रशीद भाई नै देखतां ई झट न्हाट नै व्यां रै कन्नै आया ! कन्नै आय नै पछै, रशीद भाई नै गळै लगायौ ! अर, कैवण लागा क “भाई जान ! आप तौ ईद रा चांद बणग्या हौ ! आ कांई बात है, आप तौ कदेई मिळ्या कोयनी करौ ! अबार इज़ आप नै म्हारै साथै चालणौ पड़ेला अर बैंक मांय बैठ नै चाय-नास्तौ लेवणौ पड़ेला !” इत्तौ कैय नै मैनेजर साब रशीद भाई रै हाथ सूं, बैग ले लेवै अर पछै आगै-आगै चालता जावै ! पछै कांई ? रशीद भाई तौ व्हेग्या राज़ी, चालौ चोखौ हुयौ..क, बकरौ ख़ुद हलाल हुवन्नै आइग्यौ म्हारै कन्नै ! चालता-चालता, मैनेजर साब री बैंक आय जावै ! अेस.बी.आई. बैंक रै आवतां ई, बैंक रै बारै ऊबौ चपरासी झट आय नै, दोणां नै सलाम ठोकै ! अर पछै, दोनू जणां रा बैग लेय नै मांय नै बड़ै ! चपरासी मांय नै आय नै मैनेजर साब रौ चेम्बर खोलै, अर पछै मेज़ माथै बैग धर देवै ! पछै पंखौ चालू कर नै, पाछौ बारै आय नै बैंच माथै बिराज़ जावै ! अबै मैनेजर साब अर रशीद भाई, चेम्बर में आय नै आराम सूं बैठ जावै ! मैनेजर साब हाथ ऊचा कर नै आलस मरोड़ नै यूं कैवण लागै क “भाईजान, आज़कल बैंक मांय काम घणौ बधग्यौ है !” इत्तौ कैय नै वै कम्प्युटर नै चालू कीधौ, अर भाळण लागा भुगतान व्योड़ा इस्टेटमेंट ! जित्तै क में चपरासी मांय नै आय नै, ठंडौ पाणी पिलाय नै जावै परो ! व्हिनै गिया पछै, रशीद भाई बोल्या “छोटे भाई, कांम व्हेला ज़रै ई सरकार थांनै अठै लगायौ है....इण मांय काम बधग्यौ कैवणी कतई ज़रूत कोयनी !” औ सुण नै मैनेजर साब बोल्या “अरे भाईजान, आप म्हारी बात समझी कोयनी हौ ! हमार इस्कूलां में पे-डे न्यारा चाल रिया है ! अर अै टी.ओ. साब तनख्वाह रा बिल फटा-फट पास कर नहीं रिया है, घणौ बख़त निकळ्यां पछै अैकै साथै बिल पास कर नै तनख्वाह रै चैक रा ढेर लगा देई! पछै भाईजान, उण बख़त मास्टर लोगां नै तनख्वाह देवणौ काम करां कै पब्लिक नै रिपिया लेवण-देवण रौ काम करां ? अठी तौ आ पब्लिक तंग करै, अर अठी अै शिक्षा मेहकमां रा बाबूड़ा नैरा तंग करता रेवै !” 

आ बात सुण नै रशीद भाई मुंडा माथै मुळकाण छोड़ नै कैवण लागा “छोटे भाई, इण मांय थांनै कैनी तकळीफ़ ? चैक मौड़ा आवै तौ, कांई व्हेग्यौ ? बिलां नै टी.ओ. साब सावळ जांच कर नै इज़ चैक बणावेला, ताकि बेनामी भुगतान पछै हुवेला नहीं ! इण मांय थांनै फ़ायदौ इज़ है, हमै थे फ़िक़र करौ मती !” अबै मैनेजर साब बात रौ ज़वाब नहीं दे नै, कम्प्युटर कन्नी भालण लाग्या ! ज़रै रशीद भाई पाछा बोलण लाग्या क “थां लोग भुगतान करौ, अर पछै करौ पोस्टिंग ! इण मांय थोरौ कांई काम बढ़ गियौ..? बिलां रे साथै ओथोरिटी लेटर आवै, उण मांय पूरी-पूरी डिटेल लिख्योड़ी है ! दीधोड़ा खाता रै मांय, कतरा पैसा घालणा है ? पछै ख़ाली, कागद देख नै थांनै पोस्टिंग करणी है.. इण मांय थांनै, कित्ती टैम लागेसा ?” इत्तौ सुणतां ई, मैनेजर साब रौ मूड उखङन लागग्यौ ! भौंवा चढावता यूं बोल्या “औ कांई फरमायौ, भाईजान? अठी नै देखो, मोनिटर माथै! पछै बोलो, औ अैलिमेंटरी दफ़्तर कितयारी इस्कूलां रौ बिल अेकै साथै बणायौ है ? इत्तारा ५००-६०० मास्टरां रै बिलां रौ भुगतान अेक साथ में करावणौ कांई हंसी खेल है ? अेक-अेक मिनख़ री खाता संख्या जांच करणी, विण मांय पैसा घालणा अर पोस्टिंग करणी...औ काम कांई सोरौ है ?” पण, रशीद भाई जैङा जीव पादरा बैठै कोनी ! फेरूं बळती में घी न्हाखणौ व्यारौ पैलो काम व्या करै, अैङौ काम करतां वे यूं कैवण लागग्या क “छोटे भाई थानै कन्नै इत्तौ बड़ौ इस्टाफ़ है, पछै केन्नौ रोवणौ ? इत्ता बड़ा इस्टाफ नै, पछै काम माथै लगावौ क्यूं नहीं, कांई अठै बिठा नै माखियां मरावौ कांई...?” 

हमै मैनेजर साब, थोड़ा सायंत व्या ! चढ़्योड़ी भौंवा नै सावळ कर नै वे बोल्या क “भाईजान आ राष्ट्रीयकृत बैंक है, आ प्राइवेट बैंक कोयनी ! अबै अठै तौ अफ़सरां नै इस्टाफ नै, भाई वीरा कैय नै काम चलावणौ पड़ै ! इण सगळा इस्टाफ री यूनियानां नै थे जाणौ कोनी हो, कैङी-कैङी है अै यूनियानां...इयां रै कन्नै, आपरी गलतियां छिपावण रा केई तरै-तरै ज़वाब रेया करै !” इत्तौ कैयां पछै, आंती आयोड़ा मैनेजर साब हिवड़ा रौ दरद बारै काडण लागा ! वे कैवण लागा “भाईजान, इण मैनेजर री कुरसी रै माथै कांटा बिछ्योड़ा है, आ सरकार म्हां अफ़सर लोगां नै इत्ता कमज़ोर कर दिया है क... अै बाबू री पोस्ट री लीन राखण वाळां, युनियन रा सेक्रेटरी कै अध्यक्ष म्हों रै साम्ही आय नै अैड़ा सुवाल करै क मानो वे खुद म्होंरा अफ़सर व्हौ ?” इत्तौ कैय नै, मैनेजर साब लम्बी-लम्बी सांसा लेवण लागा ! व्यारै मुंडा री रंगत देख नै, रशीद भाई सुवाल परो कीधो क “पण, अै समस्यावां तौ हरेक मेहकमा में मिळ जाई ! बीमारी री जड़, आखिर है कांई ? वा बात करौ कन्नी!” लम्बी सांसा खाय नै आख़िर मैनेजर साब बोल्या “अै ठोकिरा बाबू लोग बण जावै सेक्रेटरी कै अध्यक्ष, करेई जिला रा तौ करेई प्रान्त रा ! औरुं पछै यूनियानां देवै, इयांनै घणी सुविधा ! ठोकिरा घूमै कारां मांय, वा भी अेयरकंडीसन वाळी ! मरज़ी आवै ज़रेई बणाल्या करै, भान्त -भान्त रा टूर ! ई तरै आख़ा हिन्दुस्तान मांय, फोगट में घूमता फिरै...अै घर-गेटला !” अबै रशीद भाई नै इयांरी बातां में, इंटरेस्ट पैदा हूवण लागौ ! इण कारण लावा लेवतां व्यां नै कैवण लागा क “इण मायं, थान्नै कैन्नी तकळीफ छोटे भाई ? वे घूमै, व्यांरी किस्मत...? थे थोरो काळजौ क्यूं बाळौ हौ भला मिनख़ ?” इत्तौ सुणतांई मैनेजर साब भड़कग्या, अर बोल्या “भाईजान, घायल री गति घायल इज़ जाण सकै ! दूजा लोगां नै तौ, म्होंरी थाळी में बत्तौ घी पङ्यौ दीसतौ रेवै ! वे कांई जाण सकै म्होंरो दुःख ? औ बाबू री पोस्ट वाळौ जद-कदेई म्होंरी बैंक में आवै, म्हां लोगां नै इन्नै सलाम ठोकणौ पडै ! अर, अैङा लोगां री ख़ातरदारी करणी न्यारी पङै सा ! नी करां तौ अै ठोकिरा, करमचारियां सूं म्हों जैङा अफ़सरां रै खिलाफ़ सच्ची-झूठी सियाकतां करवाय नै...अै डफ़ोल बैठा-बैठा मज़ा लेवै ! फेरूं कांई कैवूंसा आप नै? औ बैंक रौ हितंगियो चेयरमेन थोड़ी सीक भनक पाय नै, म्हों अफ़सरां नै लताड़ पिला देवै क म्हां लोग इस्टाफ सूं बत्तौ कांम ले रिया हां कै उण लोगां नै बेफ़ालतू तळ रिया हां..? कदेई तौ भाईजान, हद व्हे जावै...सांती धारण कर नै बैठ्योड़ा म्हों अफ़सरां माथै, साव झूठा आरोप जड़ देवै क म्हों लोग व्यानै मां-बैन री गाळियां बकिया करां ! भलै और कांई कैवूं भाईजान, थोड़ो सोक बत्तौ कांई काम करां दां...इयां रै कन्नै ऊं ? बस अै कमसळ लोग बात रौ बतंगड़ बणा नै कैय दैवेला क म्हां लोग अमानवीय वैवार कर रिया हां ? म्होरै खिलाफ़ लागोड़ा सगळा आरोप भले झूठा व्हौ, पण म्हों लोगां रै ऊपर बैठा अफ़सरां री कलम तौ म्होरै खिलाफ़ इज़ चालेला !” इत्तौ लम्बौ लेक्चर सुण नै, रशीद भाई रा कांन पाकग्या ! अबै माथा रौ पसीनौ पौंछ नै रशीद भाई बोल्या क “छोटे भाई, इत्ता बड़ा-बड़ा आरोप थोरै माथै लाग जावै.. अर थे अफ़सर लोग, करौ कांई हौ ? बैठा-बैठा, माखियां मारौ कांई ? ख़ुद रै सपोट में, सबूत अेकठ करौ क्यूं नी ? आख़िर मैनजर साब काया व्है परा नै, माथा रौ पसीनौ पौंछतां थकां यूं कैवण लागा क “कांई करां? इयां नै अबै कांई कैवां, अै सारा जणां चोर-चोर मौसेरा भाई ! सारा जणां काम चोर ठेरिया ! कोई खावै गुटकौ, नै कोई खावै पांन ! अर कोई पीवै बीडी-सिगरेट ! अै अेक नंबर रा गपोड़ा, इग्यारा-बारा बाजियां तांई इयांरौ मूड बणै कोयनी काम करण रौ ! जित्तै तांई बैठ्या–बैठ्या मारतां रेयी गपोड़ा ! इण बख़त चाय-वाय पिवतां-पिवतां, बेकार री बकवास करतां जावै ! ई तरै, अै लोग दफ़्तर रौ कीमती टैम बराबाद करता रैवै ! नै पछै आ लूणी री गैळसफ़ी पब्लिक, इयांनै पलक पावंडा बिछाय नै बिठावै ! अरे, सा...! अै ठोकिरा तौ इ यांरी आदतां परी बिगाड़ी, इण बाबू लोगां नै खांड घाल्योडा सस्ता रसगुल्ला खिला-खिला नै इयांनै चटोकरा परा बणाया !” इत्तौ मोटो भासण सुणतां ई, रशीद भाई रै कानां री सुणन्नी सगति जवाब परो दीधौ ! पछै, कांई ? माथा माथै भाटा न्हाखतां ज्यूं, बोल्या क “थे खावौ कन्नी रसगुल्ला, ज़रै ई म्हने भी मौक़ौ मिळी रसगुल्ला खावण रौ..! अरे म्हारा छोटा भाई यूं खून मती बाळौ, इण सूं थान्नै कांई मिळेला..?” रशीद भाई री बात सुण नै, मैनेजर साब थोड़ा गंभीर व्है जावै ! अर पछै कैवण लागै, क “बाळू क्यूं नहीं म्हारौ खून..? अै सगळा तौ व्हे जावै अेक, म्हों रै खिलाफ़ सबूत अेकठ कर नै ! अबै आप औ बोलौ, क इत्तौ कठै है म्हों अफ़सरां कन्नै टैम के बैठा-बैठा इयां रै खिलाफ़ अेकठ करतां फिरां ? कै तौ बढ़योङौ काम पूरौ करां कै सबूत अेकठ करतां फिरां ? काम अेक व्हे सकै सा, भाईजान ! आप बोलौ क, म्हों अफ़सरां री मदद करण वाळां कुण ? बस, अबै आ मज़बूरी व्हेग्यी, क इयां रै कन्नै ऊं कांम कडावणौ व्है तौ म्हां लोग ख़ाली भाई वीरा कैय नै इज काम कडा सकां !” 

अबै तौ औ दरद हिवड़ा सूं बारै आय नै व्यांरौ घणौ मगज़ ख़राब करद्यो ! ई तरै आख़िर माइन्ड फ्रेस करण सारुं, चपरासी नै हेलो पाड़ नै चाय लावण रौ हुक्म दीधौ ! अठी नै कम्प्युटर रै माथै बिलां रा ब्योरा देखतां थकां बाबू मानमलसा नै औ चाय मंगावण रौ हेलो सुणिज्यौ ! हेलो सुण नै, वे बिचै ज़ोर सूं बोल नै कैवण लागा क “अरे साब ! अै खाता नम्बर मिळै कोयनी, कम्प्युटर माथै ! हमै यूं भळै चाय मंगवा रिया इज़ हो आप, तौ म्हारै भी अेक कप चाय मंगवा दीजौ सा ! चाय रै साथै अेक गोळी अेनासिन री परी लेवूं सा ! जित्तै पाह्ड़ै बिराज़्या बाबू सिरेमलसा बिचै बोलण लागा क “अरे सा! आ चाय मानमलसा रै वास्तै मंगवाईजौ मती, अै तौ मानमलसा नहीं व्है नै अै तौ पानमलसा बणग्या है आज़कल ! अै तौ आख़ा दिण बैठा-बैठा पान इज़ अरोगता रेवै सा ! पान री ठौड़ तौ इयां रै वास्तै मंगावा दौ सा, मीठा पान रौ बीङौ चेतना जरदा वाळौ !” इन्ना री बातां सुण नै आख़िर मैनेजर साब नै कैवणौ पङियौ क “थां सगळा सरदार मिळ परा नै, सारौ ड्यू काम निवङा दौ ! बस, फेरूं ग़लतियां मती कीजौ...पछै, चाय-पान तौ की कोयनी सा, थे कैवोला तौ थां सगळा सारुं कलाकंद, नमकीन, चाय-पान....जिकी चीज़ थे चावोला, थांनै आरोगण सारुं हाज़र कर दूंला..बस, थे टैम माथै काम निपटा दौ !” इत्तौ कैय नै मैनेजर साब, आपरै माथा माथै छायोड़ा पसीना रा अेक-अेक कतरा नै परो पूंछियौ, अर पछै चपरासी नै सारी चीज़ां खावण-पीवण री लावण सारुं हुकम देय दीधौ ! हुकम पाय नै चपरासी मैनेजर साब कन्नू रिपिया ल्या, अर बठी सूं रवाना व्यौ ! हुकम दीदा पछै मैनजर साब साम्ही भाळ्यौ, साम्ही मानमलसा औथोरिटी रौ कागद ल्योड़ा ऊबा दीस्या ! बानै देखतां ई मैनेजर साब बोल्या, क “हुकम अन्नदाता, की कसर बाकी रैयग्यी कांई..? हुकम करौ, औरुं कांई मंगवाऊ आप लोगां सारुं ?” मानमलसा पैला तौ मुळकिया, अर पछै काग़द नै व्यांरी मेज़ माथै धर नै यूं कैवण लागा क “फेरूं मंगवा देवां, मालक ! आप तौ इण टाबरां रै माथै मेहरबानी रखाइजौ सा ! अबार तौ औ कागद देखौ सा, औरुं दिरावौ थोरौ मारग-दरसण ! जिन्नी, अबार ज़रूत है ! अबै आप औ देखौ, क इण शहनवाजिया रै खाता मांय रिपिया कीकर घालां..? अठै तौ नांम देखूं, तौ खाता संख्या मिळै कोयनी ! अर खाता संख्या देखूं तौ, इण गैलसफ़ा रौ नांम मिळै कोयनी ! अबै औ बतावौ सा, क औ कांई रासो चाल रियौ है सा ? म्हने तौ औ लागै, क औ खोड़ीलो-खाम्पौ उतावळी रै मांय खोटी खाता संख्या भरी है !” अबै मैनेजर साब कागद हाथ में लेय नै, उण कागद नै सावळ भालण लागा ! अर साथै-साथै दो-तीन महिना तांई, व्योड़ा भुगतान भाळ्या ! इण गैलसफ़ा री इस्कूल सीनियर हायर सेकेंडरी गुङा विश्नोई री भुगतान-सूचियां देखतां ई, मैनेजर साब रै हाथ रा तोता उडग्या..! मैनेजर साब रै चेहरा माथै री रंगत उड़ती दैख नै, मानमलसा मुळकता थकां कैवण लागा क “यूं कांई साब, थाणौ मुंडौ उतारौ हौ..? ख़रचा सूं डरता व्हौ, तौ रेवण दौ...मती मंगवावौ सा, मिठाई-नमकीन ! पण थाणौ मुंडौ यूं मती कुम्हलावौ सा, थाणौ अैङौ मुंडौ दैख नै म्होंरौ जीव घणौ कळपै सा !” जब्हा माथै आयोड़ा पसीना नै रुमाल सूं साफ़ कर नै, थाप खायोड़ो जैड़ो मुंडौ बणाय नै मैनेजर साब बोल्या क “भाई मानमलसा, गजब व्हेग्यौ यार ! औ शहनवाजियौ दिण धवळा चांदणा में, आपां लोगां री आंख्यां माथै धूड़ौ न्हाखद्यौ ! औ कमीणौ पांच वळा लोगां रा भुगतान, आपरै खाता में करवाल्या ! ई तरै, करीब २३ लाख रिपिया रौ, गबन परो कीधौ ! इत्तौ सुणतां ई रशीद भाई फटकै ऊं उठिया, अर जाय नै मोनिटर देखण लागग्या ! व्यानै इण तरै भाळता दैख नै, मैनेजर साब कैवण लागा क “भाईजान, क्यूं थौरो दिमाग़ ख़राब करौ हो ? औ मामलौ, थाणै समझ रै बारै है !” औ सुण नै, बिचारा रशीद भाई पाछा बोलो-बोलो बैठ जावै ! 

 हमै चपरासी मिठाई-नमकीन ले नै आय जावै, *व्हिनै देखतां ई, मानमलसा राज़ी हुय नै व्हिनै हेलो पाड़”र केवै क “अै रे, भोळिया जीव ! पैली थूं अठी नै आय नै पान रौ बीड़ो देवतौ जा, पछै कलाकंद री छाब खोलजै म्हारा भाई !” पछै कांई ? चपरासी आय नै, मानमलसा नै पान रौ बीड़ो झिलाय देवै ! इण पछै औ चपरासी अखबार फाड़ नै, व्हीना कई टुकड़ा बणावै ! अर, उण सगळा टुकड़ों नै मेज़ माथै फैलावै ! हमै हर टुकड़ा रै माथै, कलाकंद अर बामज़ नमकीन धरतौ जावै ! रशीद भाई अर मैनेजर साब सारुं, मिठाई-नमकीन प्लेटां मांय धरै ! हमै तौ आख़ा दफ़्तर मांय, कलाकंद री सौरम फ़ैल जावै ! हमै आ सौरम मैनेजर साब नै, कीकर चोखी लागै ? वै सगळा जणां रौ ध्यान बंटावण सारुं, मानमलसा नै कैवण लागा क “देखौ मानमलसा, जिका बिलां रा भुगतान व्या है.. उण बिलां रा बिल नंबर भाळौ...अर देखो, आगै सोट में कांई लिख्यौ है इन्नै आगै ? हर बिल रै आगै लिखयोङा, “सरेंडर” सबद माथै ज़ोर देवौ ! अबै थे सोचौ क अेक साल में अेक कर्मचारी कित्ती वळा सरेंडर उठा सकै ?” मैनेजर साब री आ बात सुणतां ई, मानमलसा नै हूवण लागी फ़िकर, क कठेई अै मैनेजर साब उणां रै माथै लापरवाही सूं काम करण रौ आरोप नहीं जड़ देवै ? कठेई साचाणी वै, कागद नै सावल नी भाळ्यौ व्है..? कांई पत्तौ बोगस भुगतान उणां रै हाथां सूं तौ नी व्हेग्यौ व्है ? आ सरासर ग़लती, सावचेती नी राख्यां सूं हुई व्हेला..तौ ?” फ़िक़र रै मारै, मानमलसा री हालत बुरी व्हेग्यी ! इत्ती ताळ तांई जिकी ज़बान कतरनी ज्यूं चालती ही, उण ज़बान रै माथै हमै लाग जावै ताळौ..! 

नौकरी करती वळा रशीद भाई आपरै साथियां रै बिचै, मुन्सीजी रौ ख़िताब राखता हा ! दफ़्तरी कांम रा, मानिज़्योड़ा जानकार मानिजता ! अबै अैड़ी चाल रयी कानूनी बातां रै बिचै, बिना बोल्यां उणां नै कीकर असरीजै ? पछै, कांई ? मुंडा मांय पड़ी लालकी नै, बारै परी काडी..! पछै भईसा बोल्या बड़ी टसकाई सूं, क “जिकी बात इण केस सूं सम्बन्ध राखै, वा बात इज़ मैं तौल-मोल नै कैवूंला ! क, औ कमसळ पैल-पोथ तौ उण अध्यापकां रा नांम इज लिख्यां व्हेला ! बठै कन्नै, कटिंग अेटेस्टटेसन री मोहर पैला ई लगाय दी व्हेला ? आदत रै मुताबिक़, औ भोळियो जीव प्रिंसिपल तौ ज़रूर आपरा दस्तख़त उण मोहर रै माथै ठोकद्या व्हेला ? दस्तख़त व्या पछै औ खोजबलियो उण मास्टर रा नांम अर खाता संख्या काट नै, उण ठौड़ आपरौ नांम अर खाता संख्या लिख दिया व्हेला ? हमै काम व्या पछै, आ बात इस्कूल में किन्नै ठाह पड़ै ?” औ रहस्य साम्ही आवतां ई, मानमलसा रोवणकाळी आवाज़ काडता यूं कैवण लागा क “हां भईसा, औ प्रिंसिपल तौ बापड़ो ठेरियो भोळियो जीव ! औ तौ महात्मा सारिखो इंसान, म्हनै तौ डूबा न्हाख्यौ सा !” अठी नै मैनेजर साब बोल्या, क “मानमलसा, थानै कांई कैंवू ? इन्नै महात्मा सारिखो कांई कैवौ हो, औ तौ आपरै नांम रै पूठै पैलां सूं “महात्मा” लिखै है !” जित्तै रशीद भाई पाछा बोलण ढूका, क “भईसा, औ शहनवाजियो अस्यो मूरख कोयनी जिकौ ओफ़िस कोपी में बदळाव लावै..? बठै तौ औ, मास्टर रा असली खाता संख्या अर नांम लिख्योड़ा राख्या व्हेला ! नी तौ औ प्रिंसिपल, केस बुक भरती वळा ई शहनवाजिया नै पकड़ लेवतौ..?” इत्तौ सुण नै हमै मानमलसा, क्यूं उठै ऊबा रेय नै आगै सुणन्नी चावेला...? कठेई अठै ऊबा रेयग्या तौ, ख़ुदा री कसम पछै तौ मानमल भाई नै हारुने फन भी अठै आय नै बचा नहीं सकेला ! पछै, कांई..? झट जाय नै बैठग्या आपरी सीट माथै, अर सोधण लाग्या औथोरिटीयां ! 

हमै लंच रौ बख़त हुयग्यौ, चपरासी मांयला कमरा मांय जाय नै चाय तैयार करण लागग्यौ ! थोड़ी वळा में वो चाय बणाय नै ले नै आयग्यौ ! सब जणां री टेबलां माथै चाय रा प्याला मेळद्या ! मैनेजर साब नै छोड़ नै सगळा जणां, बड़ा लुत्फ़ सूं चाय अर नास्ता लेवण लागा ! पण अठै तौ अै मैनेजर साब कम्प्युटर देखतां-देखतां, मगमूम व्हेता जा रिया है ! ना तौ वे चाय पिवण री सोचै, अर ना वे मिठाई-नमकीन ठोकता नज़र आ रिया है ! पण, इण बात रौ रशीद भाई नै कैन्नौ दुःख ? वे तौ बराबर ठोकता जा रिया है, मिठाई-नमकीन ! अबै मैनेजर साब नै की नी खावतौ देख नै, रशीद भाई अेक कलाकंद रौ टुकड़ो उठाय नै उणां रै मुंडा कन्नी लिजावै ! वो निवालो गिट नै मैनेजर साब नाराज़ व्हेतां यूं कैवण लागा, क “औ कांई करौ, भाईजान...? म्हूं नैनो टाबर कोयनी हूं, जिको आप इण तरै म्हनै मुंडा में निवाळां देवता जा रिया हौ ? फ़िकर करौ मती, मैं आपो-आप खाय लेवूं !” 

अबै मैनेजर साब नै फ़िक़र इत्ती बधग्यी, आख़िर वे क्रेडिल सूं चोगो उठाय नै कोसगार रा नंबर मिळावण लागग्या ! थोड़ी ताळ पछै घंटी री आवाज़ बंद व्ही अर व्यानै कोसाधिकारीजी तेज सिंगजी री आवाज़ सुणीजी ! तेज सिंगसा कैवण लागा, क “हेलो कौन ? मैं तेज सिंग बोल रियौ हूं, आप कुण सरदार....?” तेज सिंगजी री आवाज़ सुण नै, मैनेजर साब नै जास आयौ ! अबै वे हीमत कर नै यूं कैवण लागा, क “शेखावत साब, जै माताजी री ! मैं लूणी बैंक रौ मैनेजर, क़ाज़ी बोल रियौ हूं सा ! मालक, म्हारै तौ देण व्हेग्यी ! औ शहनवाजियो...” अबै अठै तौ जास देवणी आघी बळी, अठै तौ शेखावत साब रा ठहाका फ़ोन मांय गूंज़ण लागा ! आख़िर हंसता-हंसता वे फ़ोन में कैवण लागा, क “साब! देण तौ आपनै अबै हुवेला सा ! औरुं, अबै थे पावोला फोड़ा !” आ बात सुणतांई, मैनेजर साब नै आंख्यां रै आगै री जमीन खिसकती व्है जूं लागण लागौ ! हमै वै घबरावता थकां, फ़ोन माथै शेखावत साब नै यूं कैवण लागा “कांई थान्नै, गबन रौ केस मालुम व्हेग्यौ कांई ? अबै तौ फ़ोन माथै, शेखावत साब री हंसी ढबन्नौ नांम ई नहीं ! छेवट किन्नी तरै हंसी नै ढाब नै, शेखावत साब बोल्या क “कांई थान्नै, शहनवाजिया हरामी रौ वेहम व्हेग्यौ...कांई ? अरे, क़ाज़ी साब ! औ मिनख तौ अैङौ कमीणौ निकळ्यौ, क दिन धोला चान्दणा मांय...तेबीस लाख रिपिया रौ गबन कीधौ है ! कांई कैवूं थान्नै, काज़ी साब ? थे तौ बणग्या हौ, नवाब साब! आज़कल अख़बार पढ़णी छोडद्यौ, मालक थे तौ..! अबै तौ पढ़ लौ आज रौ अख़बार, पछै करजौ आगै री बात !” आ बात सुण नै मैनेजर साब ठीमर सुर में बोल्या, क “हुजूर अबै आप इज़, बता दौ ! अबै करां कांई, मालकां ? म्हनै आप, बीच मझधार में छोड़ नै कठै ई मती जावौ ! अबै औ खिल-खिल हंसणौ बंद कर नै, कांम री बात करौ सा !” मैनेजर साब रै इत्तौ बोलिया पछै, शेखावत साब री मुधरी-मुधरी आवाज़ सुणन में आवण लागी ! शेखावत साहब कैवण लागा क “फिक़र कांई करौ हौ, क़ाज़ी साब..? थे तौ बस, लूणी रा दोय किलो रसगुल्ला ले नै पधार जाओ, म्हारै दफ़्तर ! पैला सुणलौ सा, म्हारी बात ! नीतर थाणौ पेट दुखतौ रैवेला, बिणा बात सुण्यां..? सुणौ, म्हां लोग अैङा गैलसफ़ा कोयनी हां..कोई ग़लत भुगतान व्है जावै, अर म्हां लोगां नै ठाह ई नहीं पड़ै..? औ कीकर, व्है सकै सा..? आप नै कांई कैवूं सा, अठै तौ म्हां लोग दूजा कै तीजा दिण केग कन्नै पूरा भुगतान व्योड़ी लिस्टां भेजद्या करां ! हमै नैचा सूं सुण लौ, क इण शहनवाजिया कन्नू दस लाख रिपिया तौ वसूल करल्यां हां, अर बकाया रैया जिका रिपिया जल्दी वसूल कर लेवां ! नहीं तौ थे जाण लौ, वसूल नहीं कराया तौ व्हिनै सासरा री हवा खिलावण में म्होंने कित्तौ टैम लागै ?” इत्तौ केय नै शेखावत साब, ज़ोरां रौ ठहाकौ लगायौ, अर हंसता-हंसता चोगा नै क्रेडिल माथै धर देवै ! 

शेखावत साब री बातां सुण नै, मैनेजर साब रै हिवड़ा मायं आय जावै जास! अबै चोगा नै क्रेडिल माथै धर नै, रशीद भाई नै कैवण लागा क “अरे भाईजान, थोड़ी देर तौ म्हारी बाट नाळ लेवता ! आप तौ सारौ कलाकंद अरोगल्यौ, बेटी रा बापां...?” अैड़ी बिना कांम री बातां रशीद भाई कानां कोयनी ढाळै, वै तौ मुळकाण छोड़तां कैवण लागा क “छोटे भाई, मुसाफ़िर आपरी जोख़िम माथै सफ़र करै ! साम्ही पङियौ कलाकंद, बावळा मिनख इज़ कोनी अरोगै ! जीमण मायं बैठ्या मिनख री पुरस्योङी थाळी उठा नै, बरतन मांजण वाळी लिजाद्या करै !” इत्तौ कैय नै रशीद भाई पाणी री ग्लास उठाय नै, प्लेट मांय आपरा हाथ परा धोया ! अर पछै रुमाल सूं हाथ-मुंडा पौंछ नै, आगै कैवण लागा क “अबै दूजोड़ी प्लेट मांय पङियौ है, बामज़ नमकीन ! अबै प्लेट उठाय नै खाय लो नमकीन, नीतर औ बामज़ नमकीन पूग जावेला..सीधौ थाणै चपरासी भाया रै गोगा मांय ! अर पछै, थे मूंडौ देखता रैवोला अेक दूजा रौ !” फ़ोन री घंटी बाजण लागी, क्रेडिल सूं चोगौ उठाय नै मैनेजर साब बोल्या क “कुण बोल रिया हौ, मालक..?” पाछी फ़ोन में आवाज़ आयी, क “कांई करौ, बेटी रा बापां ? कालै इज़ सरेंडर रा चैक माथै दस्तख़त ठोकिया हूं, कठेई औ हरामजादौ शहनवाजियो बोगस भुगतान तौ नी उठा ल्यौ..? औ गधेड़ो फेरूं अेक वळा और, लोगां रा खाता संख्या अर नांम बदल नै गबन करण चालियौ है ! तौ क़ाज़ी साब, अबै आप इण चैक रौ भुगतान करजौ मती ! करद्यो, तौ थाणै देण हुय जावेला !” इत्तौ कैय नै, शेखावत साब चोगा नै क्रेडिल माथै धर देवै ! अबै शेखावत साब री आवाज़ आवणी बंद व्हेग्यी ! मैनेजर साब चोगा नै क्रेडिल माथै धर नै, आगै कैवण लागा “कलाकंद अर नमकीन ठोकणा, बन्दा रै भाग में कोयनी है ! ख़ुदा रै फ़ज़ल सूं इज़, औ बन्दौ अरोग सकै !” इत्ती बात कैय नै, मैनेजर साब मानमलसा नै हेलो पाड़ नै यूं कैवण लागा क “इण हरामी शहनवाजिया रै खाता मांय भुगतान करजौ मती, करद्यौ तौ थे इज भुगतोला ! आप तौ बस यूं करौ, क औ गबन रौ केस बणा नै..चैक साथै लगा नै, पाछौ टी.ओ. साब कन्नै भेज दौ !” इत्तौ कैय नै मैनेजर साब लम्बी-लम्बी सांसा लेवण लागग्या ! अर पछै दोनू हाथ ऊचा कर नै, आलस मरोड़न लाग जावै ! उणां री आ दसा देख नै, रशीद भाई मुळकता थकां यूं कैवण लागा, क “कांई करौ छोटे भाई, अस्थमा रौ मरीज़ तौ मैं हूं, अर अठी नै अै लम्बी-लम्बी सांसा थे खा रिया हो..? कांई थोरौ जीव सोरौ कोयनी कांई, अलील बढ़ जावै तौ उण पैला थान्नै अस्पताळ दिखाय नै लाय दूं...थे, कैवौ तौ ?” रशीद भाई री अै झीणी-झीणी बातां सुण नै मैनेजर साब रौ मगज़ घणौ गरम व्हेग्यौ, अबै वै खारी-खारी नज़रां सूं रशीद भाई नै देखतां थकां मन मांय बड़-बड़ करण ढूका क “किण गधेङा रौ मूंडौ सबाह-सबाह देखियौ हौ..? जिन्नू आज़, इण मिनख रा दीदार व्या ! सगुन तौ ख़राब व्या, अर ऊपर ऊं औ मिनख़ आय नै म्हारौ माथौ पो खादौ !” व्यां नै यूं टाम्पता नै दैख, रशीद भाई कुरसी छोड़ नै उठ्या अर बोल्या क “अबै बौत देर व्हेग्यी, छोटे भाई ! कांई बताऊं, थान्नै ? दुल्हन रा मामूजान मरिया, अर मैं जनाजा मांय क़ब्रिस्तान जा नहीं सकियौ ! अबै आज़ साम रै, उणां रै रिहाईसी घर माथै ताज़ियत री बैठक राखी है ! ख़ुदा रै फ़ज़ल सूं, इण बैठक में जाय नै आ जाऊं...तौ, म्हारौ ओलबो मिटै ! अबै आप म्हनै रुख्सत हूवण री इजाज़त दिरावौ, छोटे भाई !” व्यांरी अै बातां सुणतां ई, मैनेजर साब रै जीव नै आयौ जास ! मन मांय सोच्यौ क देण मिटी, औ दूखणौ गियौ आपरै ठाणै ! अबै आराम सूं बैठ नै काम निपटावां !” मुळकता थकां मैनेजर साब बोल्या, क “भाईजान, आप तौ अबार इज़ पधारो, इण बैठक में आपरौ जावणौ बौत ज़रूरी है ! मैं भी साम रै बख़त, इण बैठक में हाज़र व्है जाऊंला..आय नै ! उठै मैं, आप सूं ज़रूर मिळूं...आप फ़िक़र करजौ मती, म्हारी ! आदाब, भाईजान !” इत्तौ केवतां थकां मैनेजर साब कुरसी छोड़ नै ऊठग्या, अर रशीद भाई नै दरुज़ा तांई पूगा नै पाछा आयग्या ! पाछा आय नै कुरसी रै माथै बिराज़ नै दोणू हाथ ऊचा लीधा, अर आलस मरोड़ता कैवता रिया क “ख़ुदा रहम..ख़ुदा रहम..! अै म्हारा परवरदिगार, थूं चोखौ आदमी भेज्यौ ! आखौ दिण नास कर न्हाख्यौ, म्हारौ ! कांम टका रौ व्यौ कोयनी, अर अलग सूं माथौ पो खादौ म्हारौ आय नै ! अै म्हारा परवरदिगार, अबै कदेई अैङा मिनख रा दीदार कराईजै मती.....!” 

 अठी नै रवाना व्या पछै, रशीद भाई नै यूं लखाव हूवण लागौ क पेट मांय ऊन्दरा कुदड़का मार रिया है ! व्यानै मैसूस हूवण लागौ, क अजेतांई पेट मांय जगा मोकळी ख़ाली है..! रस्ता बैवता व्यानै अेक नमकीन री दुकान दीखग्यी, उठै क्या गरमा-गरम मिरची बड़ा तैल में तलीज़ रिया हा ? कांई व्हीनी सौरम आ रयी ही..? पछै, कांई..? रशीद भाई री भूख इत्ती बढ़ जावै...क “व्यानै औ मैसूस हूवण लाग जावै, क अबै इण गोगा मांय की नी डालियौ तौ अै आंताङिया बारै आय जावेला...बस, अबै आवै..क, अबै आवै !” फटकै सूं वे आपरा पग उण दुकान कन्नी बधाद्या, पण उणी बख़त जेब मांय पडियौ मोबाइल बाजण लागौ..! सुणन सारुं मोबाइल नै कांन कन्नी लेयग्या, बेग़म हसीना री रोवणकाळी आवाज़ सुणतां ई वे बोल्या क “कांई बात है, बेग़म..? और किन्नै ई रिश्तेदार रै घरै जावणौ बाकी रैयग्यौ कांई, कै भळै फेर कोई ताज़ियत री बैठक बाकी रेयग्यी कांई..?” पण हसीना बी तौ इन्नौ कोई जवाब नी दे नै, रुन्दता गळा सूं कैवण लागा क “शहज़ाद के अब्बा, मैं तौ मुंडा दीखाणै लायक नी रैयी...!” इत्तौ सुणतां ई, रशीद भाई तेज़ी खाय नै बोल्या “अरी, बेग़म ! कहां मुंडा काला करके आ गयी..? सरम कर, जवान बेटे की मां होकर यह क्या कर डाला ? हाय अल्लाह..अब कैसे मुंह दिखलाऊंगा, परवरदीगार को..?” व्यां रै इत्तौ केवतां ई हसीना बी री तड़कती आवाज़ मोबाइल में सुणीजै, क “काला मुंडा व्है मेरे दुसमणौ का, मैं..मैं ..तौ शहजाद के अब्बा, अब क्या, करूं ? मुझ बदनसीब को, उस लुगाई ने ठग लिया..सबाह-सबाह जो औरत बरसाली में बैठी थी, हाय अल्लाह..! उसने लूट ल्या मुझे, धोले च्यानणै में ! हाय ख़ुदा, मुझे क्या मालुम? वह कलमुहीं तो ठग थी, वह मुझ से अपने भाई के इलाज़ के वास्ते पांच हज़ार रिपिया लेकर चली गयी !” इण पछै व्यांरी आवाज़ मीं मीं निम्बली सिसकियां में बदळ जावै ! जित्तै मोबाइल आपरै हाथ में लेय नै शहजाद बोलै, क “अब्बाजान मालुम पड़ी है, क कोतवाळी इलाका रै मांय आयोड़ा सिन्धी साहबज़ादा मौहल्ला में रैवण वाळी मोहम्मद्या री बीबी आयशा आपाणा भदवासिया इलाका मांय आय नै....ख़ासा बख़त सूं अपने-आप नै किन्नी नामचीन मिनख री बैन बतावतां थकी, आपरा खाविंद, बेटा कै सास नै अस्पताळ मांय भरती हूवण री झूठी जानकारी देवती जावै ! अर पछै दयावणी बण नै लोगां नै बेवकूफ बणावती जावै, इण तरै ठगी करती-करती वा केई लोगां नै वा ठग ल्यौ है ! आ मोहतरमा आपांणा भदवासिया इलाका मांय रैवण वाळां अशोक बालोटीया, रुपेश, राजू, मांगी लाल अर राम लाल रै साथै ठगी करती रैयी ! इणी तरै औरुं कैई इलाका में जाय नै आ मोहतरमा ठगी करती आ रही है ! कांई कैवूं सा, अबै आप नै..? आ तौ सबाह-सबाह आज़ आय नै, अम्मीजान रै भोळापणा रौ फ़ायदौ उठाय नै पांच हज़ार रिपिया ठग नै लेयग्यी ! दोपरा तौ अब्बाजान हद व्हेग्यी, आ तौ भदवासिया अस्पताळ रै नज़दीक रैवण वाळां नासिर चाचा रै घरै जाय पूगी ! उठै नासिर चाचा नै इज़ कैवण लागग्यी, क भदवासिया अस्पताळ कन्नै रैवण वाळां नासिर मियां री बैन हूं ! म्हारौ भाई नासिर अेम.डी.अेम. अस्पताळ में भरती है, व्हिनै इलाज़ सारुं पांच हज़ार री सख्त ज़रुत है ! अगर व्हिनौ इलाज़ नी व्यौ तौ व्हौ परो मरी...म्हारौ भाई..! इत्तौ सुण नै नासिर चाचा मुळकता थकां व्हिनै यूं कैयौ क “बाई, कांई थूं नासिर मियां नै ओळखै कांई ?” वा फटकै सूं बोली क “ओळखूं क्यूं नी, व्हौ तौ म्हारौ सगौ जामण जायो भाई है... कांई करूं, अबै वो बिचारौ अस्पताळ मांय भरती है !” इत्तौ सुणतां ई नासिर चाचा तेज़ी खाय नै यूं कैवण लागा क “गतगेली बावळी थन्नै दीसै कोयनी, क औ छ: फुट रौ आदमी पछै है कुण? हिया फूटोड़ी गधेङी, मैं इज़ नासिर हूँ..जिन्नै साम्ही थूं ऊबी-ऊबी, बकवास करती जा रही है !” इत्तौ सुणतां ई, उण मोहतरमा रा होस उड़ग्या ! अठी नै हाका-दड़बङ करिया सूं, उठै मोहल्ला रा लोग भेळा व्हेग्या ! केई मोटवीर मिनख़ इण मोहतरमा री पिछाण काड ली, अर वे कैवण लागा क “अरे सा, आ तौ साहबज़ादा मौहल्ला मांय रैवण वाळां मोम्मदिया री जोरू है !” पछै कांई? व्हिनै पकड़ नै लेयग्या, महामिन्दर थाणा में ! अर उठै मौजूद अे.अेस.आई. साब पुरषोतमसा कन्नै हाज़िर करियौ ! वे व्हीनै सावळ पूछ-ताछ कीधी, अर पछै इन्ना शौहर मोम्मदिया नै बुलवायौ ! पछै तौ अब्बाजान अै दोणू मियां-बीबी जुरम क़ुबूल कर लियौ, पण क़ुबूल करिया सूं कांई हुवै सा..? नुक्साण रौ जोग हौ, व्हौ तौ व्हेग्यौ सा..वा मोहतरमा किसा पाछा रिपिया देवण वाळी..? अै दोणू बींद-बहू तौ रोवणकाळी हरक़तां करण ढूका, वै तौ आपरी ग़रीबी रौ हवालौ देवतां अैङा ज़ोर-ज़ोर ऊं रोया सा... क, ऊबा पीड़ित लोगां रौ दिल पसीज़ गियौ सा ! अबै औ केस निपटतौ दैख नै, अे.अेस.आई. साब बोल्या क “अबै रमज़ान रौ महीनो लागण वाळौ है ! अबै आप लोग औ इज समझ लौ, क आप अेक ज़रुतमंद री मदद करी हौ ! ख़ुदा ज़रूर थांनै, जन्नत अता करेला !”

 इत्तौ बड़ो व्याख्यान देवतौ शहज़ाद आघै कैवतौ गियौ क “औ रहस्य रौ पड़दौ आघौ हूवतां ई, अम्मीजान तौ बोबाड़ा काड नै ज़ोरां ऊं रोवण ढूका ! अबै कांई करूं, अब्बाजान..? अम्मीजान नै, कीकर समझाऊं ? वै तौ, की समझै ई कोयनी ! औरुं बोलतां जावै, क “शहज़ाद थूं जाणता नहीं, तेरे अब्बू आख़ा दिण डिपो मांय काम करतां तळीज़तां जा रिया है...व्यारौ बदन सूख-सूख नै कांटौ व्हेग्यौ है, इण बारै में थूं कांई जाणै शहज़ाद ? हाय अल्लाह, अै पांच हज़ार रिपिया व्यांरी गाढ़ी खून-पसीना री कमाई रा हा ! मैं बदनसीब, अै मैणत रा रिपिया बरबाद कर न्हाख्या ! अबै तौ अल्लाह पाक भी, म्हनै माफ़ नी करेला !” अबै मैं अम्मीजान नै, कीकर समझाऊं ? अबै आप घरै आवौ ज़रै, अम्मीजान नै सावळ समझा दीजौ !” 

 ज़रै रशीद भाई सायंती सूं कैवण लागा, क “शहज़ाद ! थूं अपनी अम्मी को सावळ समझा, क यही अल्लाह की मरज़ी थी ! अब, फ़िक़र नहीं करें !” इत्तौ कैय नै, रशीद भाई मोबाइल बंद करै ! अर व्हिनै पाछौ जेब रै मांय धर देवै ! इत्ती बातां करियां पछै, रशीद भाई री भूख तौ गयी धेड़ में ! अबै कठै आवै, मिरची बड़ा री सौरम? अर कठै मिरची बड़ा तळीज़ रिया है..? अबै तौ अै ख़ुद पांच हज़ार रिपिया रौ नुक्साण खाय नै, ख़ुद तळीज़ रिया है..! अबै तौ भूल गिया, कीकर पेट मांय कूद रिया हा, ऊंदरा ? भूख तौ आपो-आप अदीठ व्ही, औ ताज़ो-ताज़ो वाकयौ सुण नै ! अठी नै औ शहनवाजियो अर संदीप श्रीवास्तव करता जा रिया है अेज्युकेसन मेहकमा मांय गबन ! अर अठी नै आ मोम्मदिया री जोरू आयशा, सरे-आम आवाम नै लूटती जा रही है ! च्यारुमेर लूट-खसोट मच्योड़ी है, कठै ई किन्नी मिनख़ नै इंसानियत अर गाढ़ी खून-पसीना री कमाई रौ मैतव समझ में नी आ रियौ है ! बस, अबै तौ रशीद भाई रै हिवड़ै मांयली अेक इज़ बात बारै उभर नै व्यां रै होठां माथै आवण लागी क “इण ख़लक़त में ईमानदार, अबै है कठै..? अबै तौ आख़ा ख़लक़त मांय, भांग न्हाख्योड़ी दीसै !” 
लिखारै दिनेश चन्द्र पुरोहित 
[ई मेल : dineshchandrapurohit2@gmail.com] 

म्हारी बात आ कहानी, दैनिक भास्कर अंक डी.बी.इस्टार जोधपुर २५ जुलाई २०१३ रा पैला समनचार नै आधार बणा नै लिखी हूं ! पण इन्नै लिख्यां रै पछै, इण केस मांय घणी परगति हुई है ! आज़ रा जायजा रै तहत उपकोस लूणी [जोधपुर] रा करमचारियां री मिळी-भगत सूं अै दो आरोपी लिपिक [ शहनवाज़ अली क.लि. रा.उ.मा.वि. गुङा विश्नोई, अर संदीप श्रीवास्तव क.लि. रा.बा.उ.मा.वि. लूणावास कल्ला, जोधपुर ] अध्यापकां रै सरेंडर बिलां री रासि रौ फ़रज़ी भुगतान आपरै ख़ुद रै बचत खाता में करवा नै जुरम कीधौ है ! सितम्बर २०१३ में संदीप श्रीवास्ताव रै खिलाफ़ औ फौज़दारी मामलो दरज़ कर ल्यौ हौ ! अर दूजा लिपिक शहनवाज अली नै सह आरोपी बणायौ गयौ हौ ! लूणी थाणा रा अेस.अेच.ओ. साब कैलाश दानसा औ बतायौ हौ, क संदीप क.लि. रै खिलाफ़ २५ लाख रौ मामलौ दरज़ व्हेग्यौ है ! अठी नै शास्त्री नगर रा अेस.अेच.ओ. साब सुभाषजी सरमा रौ औ कैवणौ है, क “पुळस आरोपियां नै पकड़न सारु ठौड़-ठौड़ दबिस दे रयी है !” कोसागार री संयुक्त निदेसक अमिताजी, औ नैरो फरमायौ है, क “मामलौ सीधौ अेजुकेसन विभाग सूं जुङयोड़ौ है ! इण सूं सारी जिम्मेदारी अेजुकेसन विभाग री इज़ है ! इण कोसागार सूं, की लेणौ-देणौ नहीं ! कोसाधिकारी तेज सिंगसा [ग्रामीण] रौ कैवणौ है, क आ सारी ग़लती अेजुकेसन विभाग रै लिपिकां री है ! जिका लिपिक औ गबन कीधौ है ! क्योंकि, वै ख़ुद इज़ औ फ़रज़ी बिल बणा नै लाया हा ! इण मांय, कोसागार रा अफ़सरां रौ की लेणौ-देणौ नी ! [ डी.बी.इस्टार, तारीख १३ सितम्बर २०१३ ]. डी.बी. इस्टार तारीख ८ दिसंबर २०१३ रै अनुसार पुळस आयुक्त नाजिम अलीजी पूछताछ रै दौरान आ बात साम्ही लाया है, क “कोसागार अर अेजुकेसन विभाग रै करमचारियां बिचै मिळी-भगत ही, जिन्नू औ गबन हुयौ है ! आरोपियां रा नज़दीकी रिस्तेदार, अर दोस्तां रै सामिळ हूवण रौ संकेत मिळ्यौ है ! आरोपी लिपिकां रै बताया अनुसार, उण लोगां सूं भी पुळस पूछताछ करेला ! गबन रौ खुलासौ व्या पछै दोनू लिपिक २३ लाख रिपिया जमा करवा चुका है, अर पुळस भुगतान सम्बंधी फाईलां कोसागार सूं मंगवाय नै आप कन्नै धर ली है !” इण मामला रौ खुलासौ व्हेतां ई, अेजुकेसन विभाग इण दोणू लिपिकां नै निलंबित करद्यौ है ! निलंबित व्हेतां ई, अै दोणू लिपिक भूमिगत व्हेग्या ! विभाग री जांच में गबन री रासि रौ आंकड़ौ बढ़ जायां सूं, दोय थाणा में तीन मामला इणां रै खिलाफ़ दरज़ व्या ! तद सूं अै दोणू जणां, करीब पांच महिना तांई भूमिगत रैया ! छेवट, पुळस इयांनै गिरफ्तार कर नै अदालत में हाज़र कीधा ! इण पछै अदालत पाछा इयांनै, ८ दिसंबर तांई हिरासत मांय राखण सारुं पुळस नै सूंपद्यौ है ! अजेतांई अै दोणू जणां हिरासत में चाल रिया है ! अजेतांई औ मामलौ सलटीयौ कोयनी है ! फौज़दारी मुकदमौ घणौ लम्बौ नहीं चालणौ चाहिजै, ज़ादा लंबा चाल्यां सूं गवाह माथै प्रतिकूल असर पङ्या करै ! औ मुकदमौ सन २०१३ रौ है, अर अबै सन २०१६ चाल रियौ है ! अबै पाठक ख़ुद सोच सकै, क औ मामलौ किण दिसा में जा रियौ व्हेला..? [ इण कहानी नै रोचक बणावाण सारुं, केई काल्पनिक किरदार जोङना पङिया ! उण किरदारां रौ किन्नी जीवित या मृत मिनख़ां सूं कोई लेणौ-देणौ नहीं ! ] आपरौ हेताळू  

लिखारे दिनेश चन्द्र पुरोहित

रैवास – अँधेरी-गळी, आसोप री
पोळ रै साम्ही, वीर-मोहल्ला,
जोधपुर. [राजस्थांन]
ई मेल
dineshchandrapurohit2@gmail.com

 
                         

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